Menu
blogid : 5215 postid : 645467

गंदगी से बू आने लगी………

सरोकार
सरोकार
  • 185 Posts
  • 575 Comments

भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सभी सभ्यताओं ने अपने-अपने क्रमिक विकास में नारी को नीचे और नीचे धकेलते हुए पुरुष की शारीरिक सामथ्र्य और बौद्धिक श्रेष्ठता को तो स्थापित किया ही है साथ ही नारी के साथ सबसे क्रूर उपहास यह किया कि उसे एक देह मात्र में समेट कर रख दिया। पुरुष द्वारा स्थापित इस भार के नीचे स्त्री की समस्त प्रतिभा, अद्भूत शैक्षणिक योग्यता, प्रत्युत्पन्नमतित्व और सारी योग्यताएं गौण बन कर रह गई, यानि न के बराबर हो गई। अगर कुछ बचा तो वह है नारी देह का सौष्ठव और सौंदर्य। यह मानसिकता वर्षों से चली आ रही है। सदियों से चली आ रही इस मानसिकता का प्रभाव यह हुआ कि नारी का सुंदर शारीरिक रूप ही पुरुष और समाज द्वारा स्वीकार किया जाने लगा। क्योंकि पुरुष तो पुरुष, स्त्री समाज में भी नारी की प्रतिभा, और योग्यता की अपेक्षा सुंदर शरीर को ही वरीयता प्रदान की जाने लगी है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि ‘‘पुरुष की अपेक्षा स्त्री में सौंदर्य-बोध अधिक होता है। जिसको हम बचपन में बच्चों के व्यवहार के स्वरूप में साफ तौर पर देख सकते हैं कि लड़कियां जहां घर-घर खेलती हैं और अपनी मां के सौंदर्य सामग्रियों का उपयोग करती रहती है, वहीं लड़के दिन भर चोर-सिपाही तथा और भी बहुत सारे खेल खेलते देखे जा सकते हैं। जो लड़के-लड़कियों को उनके व्यवहार से कहीं न कहीं अलग करता है। वैसे हम आदिकाल से ही देखते आए हैं कि स्त्री अपने शरीर को विभिन्न अलंकारों से सुसज्जित सुशोभित करती आई है। पुरुष की दृष्टि में, पुरुष के वर्चस्ववाद समाज में, सुंदर देह ही स्त्री की पहचान बनी थी। वैसे बीसवीं शताब्दी में शिक्षा के प्रसार और स्त्री मुक्ति के संदर्भ में आंदोलनों ने नारी विमर्श के अनेक प्रश्नों को जन्म देकर स्त्री को अपने अस्तित्व और अस्मिमा के प्रति जागरूक तो बना दिया। परंतु औद्योगिक क्रांति और उपभोक्तावादी संस्कृति ने वस्तुओं के प्रचार के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया। और विज्ञापन को लुभावना बनाने के दृष्टिकोण से सुंदर देह से बढ़कर और क्या हो सकता था तो स्वाभाविक परिणति के रूप में सदियों की दासता निद्रा से जागती स्त्री को पुरुष ने फिर सुंदर शरीर के रूप में विज्ञापन की वस्तु बना दिया। उसने स्त्री शरीर के अद्भुत रोमांच और आनंद को भली प्रकार पहचान लिया। अतः उसने स्त्री शरीर से व्यावसायिक लाभ कमाने और नारी देह तथा नारी सौंदर्य को अपना व्यवसाय-व्यापार बढ़ाने का साधन बना लिया। विडंबना तो यह रही कि पुरुष की मनोवृत्ति को पहचान कर भी स्त्री नहीं संभली। वह अपने ही देह प्रदर्शन, सौंदर्य प्रदर्शन, में जाने-अनजाने रस लेने लगी है। यही कारण है कि ‘‘ब्यूटी पार्लरों, मॉडलिंग कंपनियों, नाइट क्लबों, रेस्तराओं, होटलों, कॉल सेंटरों, शॅपिग मॉल्स और भी असंख्य स्थानों पर काम करने वाले कर्मचारियों में युवतियों की संख्या बड़ी तेजी से दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।’’ जो आज आने-अनजाने में कहीं न कहीं अश्लील है और यह समाज में अश्लीलता को बढ़ावा देता है।
हालांकि इसके मूल में कई कारण हैं जो स्त्रियां खुद ही अपनी देह का प्रदर्शन करने लगी हैं। वैसे इसके विश्लेषण से जो तथ्य ज्ञात होते हैं उससे साफ स्पष्ट है कि पुरुष और पश्चिमी संस्कृति ही इसके मूल में विराजमान है। क्योंकि एक तरफ पुरुष जहां नारी को तरह-तरह से उत्पीड़त करके उसको अपने काबू में रखना चाहता है। दूसरी तरफ पुरुष नारी को उपभोग की वस्तु (भोग्या) के रूप में भी प्रदर्शित करना चाहता है ताकि अपनी कामुक इच्छाओं की पूर्ति कर सके। वहीं पश्चिमी संस्कृति से ओत-प्रोत होकर नारियां ने इसे ही अपना हथियार बना लिया है जिसको हम भारतीय संस्कृति में विराजमान देवी-देवताओं की कहानियों में भी पढ़ सकते हैं कि किस प्रकार विश्वामित्र और भसमाशुर और न जाने कितने ऐसे पुरुष जिनको नारियों ने अपनी देह के द्वारा या तो उनकी तपस्या भंग की या फिर उसे मारवाने में सहयोग किया। ठीक वो ही प्रवृत्ति को अपनाते हुए और पुरुष की विकृत सोच जो नारी देह पर हमेशा से केंद्रित रही है उसे समझ लिया है। तभी तो आज के परिपे्रक्ष्य में नारी अपनी देह को ही अपना ब्राहमास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने लगी हैं। यदि यहां इस बात का भी विश्लेषण कर लिया जाए कि नारी के सुंदर देह पर कौन-कौन मोहित हुआ है तो अपवाद स्वरूप शायद यदाकदा ऐसा कोई मिल जाए जो इससे प्रभावित नहीं हुआ हो, नहीं तो ऐसा कोई पेड़ उपजा नहीं, जिसे हवा न लगी हो।
आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो सभी पुरुष इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं। और अब तो स्त्रियां भी ऐसा ही करने लगी हैं। ताकि वो अपनी देह से मुनाफा कमा सके। मुनाफा कमाने की इस नीति के चलते वो इस अश्लीलता के दलदल में गले तक धंस चुकी हैं। इन्हीं की देखा-देखी आने वाली नई पीढ़ी भी इन्हीं के पदचिह्न पर चल पड़ी है। वैसे देखा जाए तो समाज में यह गंदगी पहले से ही मौजूद रही है। इस गंदगी की शुरूआत पुरुष समाज द्वारा ही हुई है जो धीरे-धीरे पुरुष प्रधान समाज द्वारा बढ़ती गई। अब आलम यह हो चुका है कि इसमें महिलाओं की सहभागिता के कारण इस गंदगी में बदबू आने लगी है। जो कहीं न कहीं समाज को पूर्णतः गदला रही है। हालांकि स्वयं द्वारा उत्पन्न इस गंदगी से अब समाज भी सकते में आ गया है कि इसका आने वाला भविष्य क्या होगा? यह तो एक ही कहावत चरितार्थ होती है कि बोए पेड़ बबूल का, तो अमीया कहां से पाए…….. क्योंकि गंदगी का सफाया पहले ही नहीं किया गया तभी तो इसमें अब बू आने लगी है तो अब पछताने से क्या फायदा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh