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जंगल का सरदार

सरोकार
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आज में आप सबको एक कहानी सुनाने जा रहा हूं। अच्छी या बुरी जैसी भी लगे कृपया सूचित अवश्य करें। वैधानिक चेतावनी के साथ प्रस्तुत एक लेख- इस कहानी के सभी पात्र, घटनाएं व स्थान कालपनिक हैं इनका किसी से भी कोई सरोकार नहीं है। अगर इस कहानी का कोई भी अंश किसी पात्र या घटना से मेल रखता है तो इसे मात्र संजोग ही समझा जाएगा। वैसे इस लेख का सबसे पहले शीर्षक बकरा यानि सरदार…. यानि प्रधानमंत्री ? ? रखा गया था। जिसको बदल कर जंगल का सरदार कर दिया गया। क्योंकि मैं किसी भी प्राणी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता। अगर इस आलेख से किसी की भावनाओं को जरा सी भी ठेस पहुंचती है तो मैं, तहे दिल से क्षमा प्रार्थी हूं।
एक जंगल है। जहां सभी प्रकार के जीव-जंतु यानि पशु-पक्षी रहते हैं। पहले इस जंगल पर बाहरी जंगल के प्राणियों का राज हुआ करता था। जिनके अत्याचारों और यातनाओं के साथ-साथ अपने जंगल को मुक्त कराने के बावत इस जंगल के सभी प्राणियों ने एकजुट होकर उनका सामना किया और अपने जंगल को उन दरिंदों से आजाद करवाया। आजाद करवाने के बाद पूरे जंगल के सामने एक ही मुद्दा था कि, जंगल का प्रधानमंत्री कौन होगा? हालांकि इसका चुनाव जंगल के प्राणियों को नहीं बल्कि कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी, शियार, गीदर, चील कौंवों, उल्लूओं, मगरमच्छों, घड़ियालों को करना था जो अपनी-अपनी राजनीति के कारण इस जंगल के मंत्री पद पर आसीन हो गए थे। इन सभी कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी, शियार, गीदर, चील कौंवों, उल्लूओं, मगरमच्छों, घड़ियालों ने कभी किसी को, तो कभी किसी को इस जंगल का प्रधानमंत्री बनाते रहे। हां यह बात और है कि कभी-कभी अच्छे व्यक्तित्व के धनी, ईमानदार, तोते जैसे भी इस जंगल में प्रधानमंत्री की शोभा बने। परंतु इनकी संख्या न के बराबर ही रही। जिस कारण यह जंगल ऐसे ही ढर्रें पर चलता गया।
वहीं 2003 में इस जंगल के सभी मंत्रियों के सामने एक बार पुनः वही स्थिति सामने आ खड़ी हुई कि, किस को आखिर इस जंगल का प्रधानमंत्री बनाया जाए। तभी सभी की निगाहें पास ही खड़े एक बकरे पर गई। जिसका नाम भूल से सरदार पड़ गया था। जो देखने में शांत, बोलने में शांत और कुछ करने में भी शांत ही रहता था। शायद इस बकरे पर भी गांधी जी के तीन बंदरों का असर था। जिसको इन मंत्रियों ने भांप लिया था। सभी ने सोचा की इस सरदार बकरे को ही प्रधानमंत्री बनाना मुनासिब होगा। नाम इसका चलेगा और काम हमारा। ठीक वैसा ही किया इन सबने। बकरे सरदार को जंगल का प्रधानमंत्री बना दिया गया।
कुछ समय के उपरांत इस जंगल के हालत ऐसे होते चले गए कि पड़ौसी जंगल के कुछ कुत्ते, बिल्लियां भी इस जंगल की सीमाओं का लांघकर गाय, बैलों, पक्षियों को अपना शिकार बनाने लगे। जिस पर इस बकरे का कोई बस नहीं चला। शायद सोचता होगा कि भाई-चारे से काम लिया जाए तो ठीक ही होगा। परंतु उसकी समझ में यह कभी नहीं आ पाया कि मेंढ़क को कितना भी नहला-धुला क्यों न लिया जाए, आखिर जाएगा तो कीचड़ में ही।
वैसे अपने जंगल में भी अब इस बकरे की स्थिति कुछ ठीक नहीं रह गई थी। जो भी कुत्ता, बिल्ली, गीदर, बंदर आदि आते इस बकरे को डरा-धमकाकर चले जाते। हालात तो ऐसे हो गए कि अब तो इन कुत्ते, बिल्लियों के बच्चे यानि पिल्ले, चूहे, बिल्ली और तो और बंदर भी अपनी हेकड़ी दिखाकर निकल जाते। यह सिर्फ उन सबका मुंह ताकता रहता। क्योंकि मुंह ताकने के सिवाय इसके पास और कोई रास्ता नहीं था। अगर विरोध करता तो कसाई के हाथों हलाल करवा दिया जाता। हालांकि नाम सरदार और काम प्रधानमंत्रियों वाला करने के कोई बकरा शेर नहीं बन जाता? रहेगा तो बकरा ही।
हालांकि कुछ समय के उपरांत फिर से इस जंगल के लिए प्रधानमंत्री की दावेदारी की जंग होने वाली है। जो तय करेगी कि कौन इस जंगल पर राज करेगा? अगर कोई शेर बना तो ठीक, यदि पुनः बकरा ही प्रधानमंत्री बना तो दो बातें होगीं। एक तो बाहरी प्राणियों के आंतक का खतरा सदैव ही मड़राता रहेगा, दूसरा शायद यह जंगल पुनः किसी बाहरी प्राणियों के कब्जें में चला जा सकता है। जिससे यह जंगल जहां से शुरू हुआ था वही फिर खत्म भी हो सकता है। अब देखना है कि इस जंगल का मुखिया कौन बनेगा?
इस जंगल की कहानी अभी पूर्णत: समाप्तर नहीं हुई है बाकी अंश एक ब्रेक के बाद……

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