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दोगलेपन की राजनीति में लिप्त कांग्रेस सरकार

सरोकार
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कहते हैं मोहब्बत और जंग में सब जायज है। परंतु हम यह कैसे भूल जाते हैं कि मोहब्बत और जंग के साथ-साथ राजनीति में भी सब कुछ जायज है। यह एक ऐसी विधा है जिसमें कुछ भी नाजायज नहीं। यदि आप राजनीति से कहीं से भी कोई सरोकार रखते हैं तो साम, दाम, दंड, भेद इसके साथ-साथ जो भी कुछ रह जाता हो, बच जाता हो, या इसके इतर आपके द्वारा जो कुछ नया इजाद कर लिया गया हो, उसका आप आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं, वो भी बिना किसी रोक-टोक के। क्योंकि यहां कोई रोकने-टोकने वाला ही नहीं है। अगर इस परिप्रेक्ष्य में आगे कहा जाए तो यह शराब की जैसी है न छोड़ी जाए। यह वे लोग होते हैं जो शराब की खाली बोतल में भी पानी डालकर पी जाए। क्योंकि सब तो मिला के पीते हैं पानी शराब में, ये पी गए शराब में देश को मिलाकर। तभी तो इनको नेता कहा जाता है। नेता जो कुछ नहीं लेता, परंतु मौका पड़ते ही डकैतों की भांति सब कुछ लूट लेता है।
वैसे नेताओं के परिदृश्य में बात करें तो हमारे समाज में दो तरह के नेताओं की जमात मौजूद है। पहला तो वह जिनके बाप-दादाओं की वजह से राजनीति विरासत में मिलती है और दूसरे वह जो अपने बलवूते पर राजनीति में कदम रखते हैं। इस असमानता के बावजूद इन नेताओं में एक तरह की समानता देखी जा सकती है वो भी राजनीति की। यानि गिरी हुई नीछ प्रकार की राजनीति की।
हालांकि नेता चाहे जो भी, हां जैसे बने हों उनका सिर्फ-और-सिर्फ एक ही मकसद होता है इस देश को जितना ज्यादा से ज्यादा लूटने कर अपना और अपने परिजनों के घरों को भरने का। चाहे जनता भाड़ में क्यों न चली जाए। पाकिस्तान, चीन हमारी छाती पर दिन-रात मूंग क्यों न दलें। इन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अगर राजनीति में वर्तमान सरकार की बात कही जाए तो इस सरकार ने हाल ही में अपने दूसरे कार्यकाल के चार साल पूरे किए हैं हां पूरे चार साल। जिस पर हमारे मूक प्रधानमंत्री ने कहा है कि इन चार सालों में विकास हुआ है। जीडीपी ग्रोथ बढ़ी है। परंतु उन्होंने यह बताने की जहमत नहीं उठाई, कि उनकी सरकार ने इन चार सालों में और क्या-क्या किया। उनको तो जनता को यह बता देना चाहिए था कि उनकी सरकार के नेताओं ने इन चार सालों में कितने घोटले किए हैं और किस प्रकार जनता का खून चूसा है। साथ-ही-साथ यह भी बता दिया होता कि इन अरबों-खरबों के घोटले कि रकम को किस हिसाब से और किस अनुपात में नेताओं में बांटबारा हुआ है। इसके साथ ही यह भी बता देना चाहिए था कि उनकी सरकार में किस-किस नेता ने विदेशी बैंकों में इन चार सालों में कितनी रकम जमा की है। परंतु यह नहीं बताया। विकास की बात करके चले गए, अपने बिल में।
वैसे तो सभी जानते है कि हमारे मूक प्रधानमंत्री सिर्फ एक पियादा मात्र है जिसको आगे रखकर कांग्रेस दोगलेपन की राजनीति का गंदा खेल खेल रही है। इस दोगलेपन के खेल के साथ अब कांग्रेस सरकार दिखावे की भी राजनति करने लगी है। क्योंकि वह चाह रही है कि आने वाले चुनाव तक उसकी छवि जनता के सामने साफ-सुधरी हो जाए, तभी तो उसने अपने कुछ नेताओं के सिर पर से अपना हाथ खींच लिया है। एक तो हमारे रेल मंत्री जिनके भतीजे की वजह से उनको इस्तीफा दिलाया गया। और दूसरे बीसीसीआइ के अध्यक्ष जिनके दामाद स्पॉट फिक्सिंग में फंसे होने के कारण सरकार उनको इस्तीफे देने पर जोर डाल रही है। ताकि वह यह कह सके कि हम दोषी लोगों को ही नहीं, उनके परिजनों के भी दोषी होने पर अपनी पार्टी से निष्कासित कर देते हैं। परंतु मेरी समझ में यह नहीं आया कि ‘करे कोई और भरे कोई’। यदि ऐसा ही है तो सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के रहनुमा को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि वह यह क्यों भूल जाती हैं कि उनके प्रिय दामाद पर भी घोलाटे तथा उनके लाडले पुत्र पर बलात्कार का आरोप लग चुके हैं। जिसको सरकार व कानून ने एक सिरे से नकार दिया। शायद इसी को राजनीति कहते है कि तुम करो तो रासलीला, हम करें तो करेक्टर ढीला। तुम करो तो चमत्कार और हम करें तो बलात्कार।

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