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प्यार और प्यार के नाम पर अपनी शारीरिक भूख की तृप्ती, हर रोज प्यार को बढ़ावा देती है कभी इसके साथ तो कभी उसके साथ। यही आज की युवा पीढी की चाह है, चाहे वह लड़का हो या लड़की, दिल बहलना चाहिए, दिल बहलता है आपके आ जाने से। क्योंकि यह दिल तब तक बहलता है जब तक यह समाज से परे परिवार से परे होता है। प्यार की सच्चाई तब समझ आती है जब यह परिवार और समाज के समक्ष परिलक्षित होती है। तब यह प्यार या तो दोनों के लिए मौत का कारण बन जाता है या फिर लड़के पर थोप दिया जाता है बलात्कार का मामला। यही प्यार है जो आज अपनी तीव्र गति से समाज की रगों में बिना दिल के दौड़ रहा है। जोश और जज्बें के साथ। दवाओं के पुरजोर इस्तेमाल के साथ। बिन बारिस के छतरी का प्रयोग हो या 72 घंटे गुजर गए हो आप बेझिझक मांग सकते है वो भी अपने हक से। क्योंकि यह प्यार की पूजा में इस्तेमाल होने वाला प्रसाद है, बिना इसके पूजा करना खतरे से खाली नहीं हो सकता। भगवान नाराज हो सकते है और आपको श्राप के तौर पर कोई खबर कुछ महीनों बाद सुनने को मिल सकती है। यह खबर प्यार करने वालों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है और इस सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए झंडू बाम या पेन किलर काम नहीं करेगी, इस सिरदर्द के झंझट से मुक्ति का मार्ग चंद रूपए खर्च करके पाना होगा। चंद रूपए की चढौत्री चढ़ाने के बाद इस सिरदर्द को वह मुक्तिदाता किसी नाली, कूड़ा घर या फिर कचरे के डिब्बे में फिकवा देता है जिसको कीड़े-मकोड़ और गली के आवारा कुत्ते नोंच नोंच के खाते हैं और दुआ देते हैं इन प्यार के पुजारियों को कि ऐसे ही पूजा करते रहे। ताकि आपकी पूजा का प्रसाद का भोग हम भी समय समय पर लगा सके।
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