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मीडिया दलालीकरण और भावी सरकार

सरोकार
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मीडिया का काम आमतौर पर समाज में स्थापित कुरूतियों, विसमताओं और समाज में के हर तबके तक सूचना पहुंचना, उन्हें शिक्षित व मनोरंजन करना भी है। यह एक सरल परिभाषा के दायरे में आती है फिर भी देखा जा सकता है कि मीडिया को दी गई यह सरल परिभाषा में भी परिवर्तन हो चुका है। मीडिया जनमत तैयार करने, निर्णय सुनाने, प्रोपेगेंडा फैलाने, अश्लीलता को बढ़वा देने, राजनेताओं का बखान करने, साथ-ही-साथ कुरूतियों का इस तरह महिमामंडन करके दिखाया जाना इनके लिए आम बात हो चुकी है। जिस पर समय-समय पर उंगलियां उठती रही हैं। परंतु कभी हमने इसके पीछे चल रहे या चलाए जा रहे संस्थाओं के दलालीकरण की पृष्ठभूमि पर विचार विमर्श नहीं किया, कि समय के परिवर्तन के साथ इन संस्थाओं में भी बदलाव आ सकता है। नहीं आना चाहिए फिर भी यह परिवर्तन अपने तीव्रवेग से चल रहा है।
वैसे मीडिया पर समय-समय पर बहुत से कानून लागू किए गए, जिनका पालन करना इस संस्थानों ने कभी मुनासिब नहीं समझा। इसके लिए भारतीय पे्रस परिषद के अध्यक्ष और सदस्य ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया कि वह इन कानून का पालन क्यों नहीं कर रहे हंै! शायद जरूरत ही महसूस नहीं होती। दूसरी तरफ अपने आप को लोकतंत्र का चैथा खंभा कहलाने वाला मीडिया छुट्टा सांड की भांति दौड़ा जा रहा है बिना किसी लगाम के। वहीं सरकार ने भी इस सांड पर काबू करने का अपना फैसला त्याग दिया है। इसमें भी सरकार का अपना हित छिपा हुआ है। क्योंकि सरकार की गर्दन (नेता, राजनेता और भ्रष्टाचारियों) खुद फंसी हुई है जिसकी लगाम इन मीडिया संस्थानों के हाथों में दिखाई दे रही है। जिस दिशा में यह मोड़ना चाहते हैं उस दिशा में मोड़ दिया जाता है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में उल्टी गंगा बह रही है। जिस पर जिसका नियंत्रण होना चाहिए वह छुट्टा और जिस पर नहीं वह मीडिया के इसारे पर मुजरा कर रहा है। अगर आज के परिप्रेक्ष्य में सरकार को रखैल की संज्ञा से सुशोभित किया जाए तो मेरे मित्रों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि मैं जनता हूं कि मेरे बहुत सारे मित्रगण किसी-न-किसी पार्टी से सरोकार रखते हैं और बहुत से मित्रों के सिर पर किसी-न-किसी राजनेताओं का हाथ बना हुआ है। अगर मेरे मित्रगण यह आरोप लगाए कि मैं सरकार के खिलाफ इस तरह के आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कैसे कर सकता हूं तो यहां यह भी बता दूं कि मैं, मीडिया से सरोकार रखता हूं। बावजूद इसके मैं, मीडिया के क्रिया-कलापों पर समय-समय पर प्रश्न चिह्न लगाता रहता हूं तो सरकार इससे कैसे अछूती रह सकती है।
अभी दो-तीन दिन पहले प्राइम टाइम पर प्रसारित हो रही एक खबर का मैंने विश्लेषण किया जिसको लगभग सभी समाचार प्रेमी और राजनैतिक घरानों व पार्टियों से सरोकार रखने वाले लोगों ने देखा होगा। खबर हमारे लल्ला की दिखाई जा रही थी जो पंजाब विश्वविद्यालय के मंच से अपने मुखारबिंदु से अच्छे-अच्छे प्रवचन दे रहे थे कि विपक्षी पार्टियां उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को लागू नहीं होने देती या उन्हें विकास के लिए काम नहीं करने देती। बड़ी आश्चर्यचकित बात है जिनकी अम्मा के हाथों में देश की कमान हो वही यह राग अलापेंगे तो कैसे काम चलेगा। अगर यह विकास की बात करें तो 8 साल में देश के विकास का पहिया वहीं के वहीं स्थिर है। जिसका ढीकरा यह व उनकी पार्टी विपक्षी दलों पर फोड़ रहे हैं। परंतु वह यह भूल रहे हैं कि चाचा मनमोहन की सरकार के कार्यकाल में (शुरू से लेकर अब तक) कितने घोटाले हुए, और कितनी बार जनता का उनकी पार्टी ने खून चूसा। इस बात पर सभी का मुंह सील जाता है। यह सरकार नहीं मच्छर है जो गरीब जनता का खून चूस रही है। क्योंकि इस कमरतोड़ मंहगाई के कारण यह दो वक्त की रोटी का गुजारा भी नहीं कर सकते। तब तक मच्छर मारने की दवा का कैसे प्रयोग कर सकते हैं। हां हो यह सकता है कि इस मंहगाई की मार से बचने के लिए वह मच्छर मार दवा का ही सेवन कर ले ताकि यह मच्छर दुबारा कभी खून न पी सकें।
इस परिप्रेक्ष्य में कहें तो हमारे देश के लल्ला अपने प्रवचनों के समय यह भी भूल गए कि उनके जीजाजी श्री पर भी अब आरोप लग चुके हैं। फि भी इस मुद्दे पर बोलने की वजह वह अपने मियां मिट्ठू बनते रहे। सही बात है रात में गुनाह करने वाला दिन के उजाले में अपने आप को हमेशा साहूकार ही बताता है।
इस तरह की खबरों को मीडिया ही महिमामंडन करके दिखाता है क्योंकि यह उनके लिए बड़ी खबर का काम करती है। टीआरपी बढ़ाने का काम करती है। वह यह भूल जाते है कि वह ही हैं जो किसी को रातोंरात शोहरत की बुलंदी पर पहुंचा भी सकता है और उसका नामोनिशान की मिटा सकता है। फिर भी मीडिया संस्थाओं के लोग इनकी डाली गई हड्डियों पर जीभ ललचाकर आश्रित हो जाते हैं और जैसा यह चाहते हैं वह करने लगते हैं। वह यह भी भूल जाते है कि उनका समाज के प्रति भी कोई सरोकार है जिसके लिए उसे चैथे स्तंभ से नबाजा गया है ताकि गरीब जनता के लिए जब तीनों स्तंभ नकारा साबित होने लगे तो वह उन्हें शोषण से मुक्ति व अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने में और उनका हक दिलाने में कारगर सिद्ध हो सके। कालचक्र का पहिया अपनी घुरी पर लगातार घूमता रहता है फिर भी वक्त रहते इन संस्थाओं के लोगों के चेतने और दलालीकरण का त्याग करके जनता के हितों में पुनः पहले जैसी सोच कायम करने की है। नहीं तो तीनों स्तंभ की भांति इस स्तंभ से भी आम जनता का बना हुआ भरोसा भी खत्म हो जाएगा।

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