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मैं भी देशद्रोही हूं

सरोकार
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संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों, जिसके अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निहित है, में सभी नागरिकों को अपना मत रखने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। मैं भी इस मंच के माध्यम से अपना मत रखने का प्रयास कर रहा हूं और हमेशा करता रहूंगा। यदि सच बोलना और सच को समाज के सामने लाना देशद्रोह के अंतर्गत आता है तो मैं भी यह गुनाह करने जा रहा हूं। और इस तरह के गुनाहों को रोकने के लिए सरकार के नामचीन नुमाईदे अपना भरकस प्रयास कर रहे हैं, करते रहेंगे। इस दबावपूर्ण प्रयास के बाद तो पत्रकारों, मीडिया वालों सचेत हो जाए, सर्तक हो जाए क्योंकि अगला नंबर आपका ही आने वाला है। हमें इस मुगालते में कदापि नहीं रहना चाहिए कि इस प्रचंड अग्नि की ज्वाला में वह खुद को बाल-बाल बचा सकते हैं। यहां तो केवल वही लोग बच सकते हैं, जिन पर सरकार की रहमत बरसती है या सरकार की कृपा दृष्टि पाने के लिए उन्हें सच को झूठ की चादर तले बार-बार तफन करना पड़ता है। और जो बिना किसी रोक-टोक के इनके काले कारनामों को प्रदर्शित करते हैं उन्हें तो यह सब हमेशा से झेलना पड़ा है और पडे़गा भी।
मैं इस बात के पक्ष में बिलकुल भी नहीं हूं कि, देश का कोई भी नागरिक भारत के राष्ट्रीय प्रतीक या राष्ट्रीय चिह्न का अपमान करे, उसकी गरिमा का धूमिल करने का प्रयास करे। परंतु यह नियम हर किसी पर उसी तरह लागू होना चाहिए जिस तरह से एक आम आदमी पर लागू किए जाते हैं। हालांकि ऐसा देखने को कहां मिलता है यहां भी कायदे-कानून को व्यक्ति की हैसियत के अनुसार बांट दिया जाता है जो जितना बड़ा रसूकदार, उसके लिए कानून की परिभाषाएं ही बदल दी जाती है। रही बात आम व्यक्ति की तो कानून बनते ही इन्हीं के लिए हैं ताकि अपराध की सजा और अपराध न करके भी सजा, दोनों भुगत सके। जिसके लिए मुझे उदाहरण देने की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
हां यह बात और है कि बड़े-बड़े (नेता, अभिनेता, राजनेता, खिलाड़ी और मंत्री) लोगों की करतूतों और इनके गिरेवान में झांका जाए तो यह लोग नंगों से भी गए-गजुरे निकलेंगे। क्योंकि यह रसूकदार लोग होते हैं। इसलिए इनके लिए राष्ट्र का, राष्ट्रीय प्रतीक तथा राष्ट्र ध्वज का अपमान करना कोई बड़ी बात नहीं है। इस सूची में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न, कपिल सिब्बल (उल्टा तिरंगा), सचिन तेंदुलकर (तिरंगे का केक काटना), सानिया मिर्जा (पैरों के सामने तिरंगा रखना), कांग्रेस पार्टी का पोस्टर (राष्ट्रीय स्तंभ में शेरों के स्थान पर राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, सोनिया गांधी) का मोखोटा लगाना। यह भी देशद्रोह के दायरे के अंतर्गत आता है, परंतु इन लोगों के खिलाफ कुछ भी नहीं किया गया। क्योंकि यह बड़े लोग हैं और बड़े लोगों की बड़ी बात भी होती है। वहीं असीम त्रिवेदी द्वारा बनाएं गए कार्टून पर सरकार द्वारा इस तरह की प्रतिक्रिया समझ से परे है शायद यहीं आ के सारे कायदे-कानून धरे-के-धरे रह जाते हैं। एक कहावत यहां बिलकुल सटीक बैठती है कि ‘‘तुम करो तो रासलीला, हम करें तो करेक्टर ढीला।’’
वैसे असीम ने राष्ट्रीय स्तंभ में शेरों के स्थान पर भेड़िया और सत्यमेव ज्यते के स्थान पर भ्रष्टमेव ज्येत लिखा तो क्या गलत किया। हो भी यही रहा है, पूर्व और भावी सरकार भेड़िया जैसा ही काम करती आ रही है और कर भी रही है। और आम जनता का खून चूस-चूसकर अपनी तिजौरी भरे जा रही है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण दिन-प्रतिदिन हो रहे अरबों-खरबों के घोटाले और सारा रूपया बिना डाकर के हजम, वो भी बिना हाजमोला के। यही तो चला आ रहा है। वहीं जनता तो अब घोटालों की आदी हो चली है। वह तो यह देखना चाह रही है कि घोटालों में घोटाला कब होगा। इसके अलावा जनता बेचारी कर भी क्या सकती है। यदि कोई सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास भी करता है तो उसकी आवाज को दबाने की पूरी कोशिश की जाती है। साम, दाम, दंड और भेद हर चीज का इस्तेमाल किया जाता है। जैस हमेशा से देखने को मिला है। क्योंकि यह करें तो चमत्कार, और हम करें तो बलात्कार।
इतना सब कुछ लिखने के उपरांत शायद सरकार की नजर में मैंने भी देशद्रोह का काम किया है। मुझे भी जेल में डाल देना चाहिए क्योंकि इस नाते तो मैं भी देशद्रोही ही हूं।

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