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कामकाजी महिलाओं के शोषण से तात्पर्य है-‘महिलाओं के साथ कार्य स्थल पर मानसिक व शारीरिक शोषण करना’। जब महिलायें घर से बाहर निकलकर कार्य स्थल पर काम करने के लिए जाती हैं तो कुछ कामदेवता के अवतार उनका जीना मुहाल कर देते हैं। सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ निजी ऑफिसों में भी युवतियों का जमकर शोषण किया जाता है। उन्हें पदोन्नति और उच्च वेतन के नाम पर आकर्षित किया जाता है। और, उनके शरीर से खेला जाता है। भारत आज स्वतंत्र है, परंतु औरतें आज भी पुरूष मानसिकता की गुलाम हैं। उन्हें आज भयंकर यौन शोषण का सामना करना पड़ता है। कार्यालय में जहां एक ओर कार्य कर रही महिला अधीनस्थ को भी यौन-उत्पीड़न शिकार होना पड़ता है, तो दूसरी ओर सरकारी महिलायें और महिला बॉस तक भी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। बात चाहे वकीलों की कहें या डॉक्टर की, बात चाहे सरकारी क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की, बात चाहे किशोरियों की हो या प्रौढ महिलाओं की, हर आयु और हर सामाजिक-आर्थिक वर्ग की महिलाओं को शोषण का दंश झेलना पड़ता है।
‘‘भारत में कामकाजी महिलायें भले ही परिवार में आर्थिक स्थिरता लाने में अहम् भूमिका निभाती हों, लेकिन अपनी व्यावसायिक जिंदगी के कारण उन्हें घरेलू हिंसा का ज्यादा शिकार होना पड़ता है।’’ कामकाजी महिलाओं के साथ शोषण के मामले काफी अधिक बढ़ गए हैं। काम पर जाने और बिजनेस के सिलसिले में लोगों से मिलने कारण कामकाजी महिलाओं का शोषण अधिक होता है। ‘‘रोजगार पाने वाली लगभग 80 फीसदी महिलाओं को बेरोजगार महिलाओं की तुलना में अपने पति के शोषण का ज्यादा शिकार होना पड़ता है।’’ कामकाजी महिलाओं के साथ निम्नलिखित प्रकार का शोषण किया जाता है;-
किसी महिला से अश्लील इशारे करना
महिला पर सैक़्स संबंधी फ़ब्तियां कसना
किसी महिला को यौन-संबंध स्थापित करने के लिए मजबूर करना
महिला से यौन संबंधों की मांग करना
महिला को बेवजह स्पर्श करना
महिला के साथ किसी भी प्रकार का भौतिक, मौखिक या अमौखिक यौन कृत्य करना
महिला को अश्लील चित्र, साहित्य आदि दिखाना
महिला को अश्लील चित्र, साहित्य, फिल्म (पोर्नोग्राफी) आदि देखने के लिए प्रेरित करना
यदि किसी महिला के सामने सार्वजनिक रूप से अश्लील चित्र, साहित्य आदि का प्रदर्शन किया जाता है, तो महिलायें बेहद शर्म महसूस करती हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि कार्यालय में पुरूष सहकर्मी या अधिकारी महिला की आर्थिक मजबूरी का लाभ उठाना चाहता है। इसके लिए वे महिला को जब-तब आर्थिक सहायता देते रहते हैं, ताकि समय आने पर उनके अहसानों तले दबी महिला उनकी किसी अनैतिक मांग को भी नकार न सके। एक सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि 60 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं के साथ शोषण होता है। कामकाजी महिलाओं का कहना है कि अधिकतर उनके सहकर्मी ही अनके साथ बुरा बर्ताव करते हैं, लेकिन शोषण करने में उनके अधिकारी और अधीनस्थ कर्मचारी तक पीछे नहीं रहते हैं। कार्य स्थल पर उनके सामने सार्वजनिक रूप से द्विअर्थी भाषा और शब्दों का खुलेआम प्रयोग किया जाता है। जबर्दस्ती उनके नजदीक आने की और उन्हें छूने की कोशिश की जाती है।
कामकाजी महिलाओं के साथ शोषण चाहे सरकारी क्षेत्र में हो या निजी, महिलाओं के साथ प्रायः खराब, अनैतिक और अश्लील व्यवहार ही किया जाता है। सरकारी कार्यालयों में तो स्थिति और भी अधिक विकट है, क्योंकि वहां उत्पीड़क पुरूष अपने आपको अपेक्षाकृत कहीं अधिक सुरक्षित समझते हैं। उन्हें नौकरी आदि छूट जाने का कोई भय नहीं रहता। छोटे स्तर के कर्मचारी तो अश्लील फ़ब्तियां कसने से और भी बाज नहीं आते हैं। कई बार पुरूषों द्वारा महिला कर्मियों के सम्मुख इस तरह की अश्लील बातें अप्रत्यक्ष रूप में कही जाती हैं कि महिला कर्मी सार्वजनिक रूप से अपने आपको अपमानित महसूस करती है।
लगभग ऐसा ही हाल निजी कार्यालयों में भी है। यहां भी पग-पग पर, हर जगह, हर समय महिलाओं को उनके ‘महिला’ होने और ‘भोग्या’ होने का अहसास कराया जाता रहता है। निजी कार्यालयों में होने वाले शोषण का एक शर्मनाक पहलू यह है कि यह सब आधुनिकता के नाम पर किया जाता है। कार्यस्थल पर होने वाले शोषण का एक दुखद पहलू यह है कि कार्य स्थल पर नियोक्ता या अधिकारी द्वारा शोषण करना काफी आसान होता है। क्यों कि, ये लोग सोच-समझकर महिलाओं का शोषण करते हैं। ये लोग अधीनस्थ महिला को धन या पदोन्नति का लालच देते हैं, बहलाने-फुसलाने का प्रयास करते हैं। यदि फिर भी इनकी मंशा पूरी नहीं होती, तो ये लोग बल का प्रयोग करने लगते हैं। अक्सर देखा जाता है कि यदि कोई महिला अपने साथ हुए शोषण की शिकायत करती है, तो उसे तरह-तरह से पेरशान किया जाता है, उसका कैरियर खराब करने की धमकी भी दी जाती है। कई बार तो उसे नौकरी तक से निकाल दिया जाता है।
कामकाजी महिलाओं के शोषण में सरकारी और गैर सरकारी के साथ-साथ मजदूर वर्ग की महिलाओं के साथ भी शोषण होता है। ये महिलायें छोटे-छोटे कारखानों, ईंट के भट्टों और निर्माण क्षेत्र में मेहनत मजदूरी करती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ग के साथ सबसे अधिक शोषण होता हैं। क्योंकि, दो वक़्त की रोटी की तलाश में भटक रही ये महिलायें न तो जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठा पाती हैं और न ही उन्हें अपने अधिकारों के बारे में कुछ पता रहता है। साथ ही मालिकों के द्वारा किए जाने वाले शोषण का विरोध करने में अपने आप को अक्षम महसूस करती हैं। क्योंकि परिवार का पालन-पोषण करने और खर्च चलाने हेतु वे अपने मालिकों पर ही निर्भर होती हैं।
हालांकि महिला शोषण के मामलों को रोकने के लिए भारत में सर्वोच्च न्यायालय की पहल काफी प्रशंसनीय है। सर्वोच्च न्यायालय ने ही 12 अगस्त, 1997 कामकाजी महिलाओं के शोषण को परिभाषित करते हुए उन कृत्यों का जिक्र किया, जिन्हें शोषण माना जायेगा। शोषण के मामलों को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश दिए-
संस्था एवं कार्य स्थल के नियोक्ता या जिम्मेदार अधिकारी का यह उत्तरदायित्व होगा, कि वह महिला शोषण के मामले में इसके निदान एवं दंड प्रावधान के लिए आवश्यक उपाय करें।
महिला शोषण के अंतर्गत ऐसे सभी अवांछित तथा अशोभनीय शब्द, संकेत एवं व्यवहार आते हैं, जो यौन-भावनाओं से संबंधित हैं, जैसे-सैक़्स सूचक शब्द या टिप्पणी करना, उद्देश्यपूर्ण शारीरिक संकेत या संपर्क, किसी भी प्रकार के यौन कार्य की मांग करना या उसके लिए प्रस्ताव रखना और अश्लील फिल्म, चित्र, साहित्य आदि दिखाना।
सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में महिला शोषण को रोकने के लिए परस्पर व्यवहार एवं अनुशासन से संबंधित प्रावधानों में यौन उत्पीड़न रोकने के लिए उचित प्रावधानों का समावेश करना चाहिए।
निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को औद्योगिक रोजगार (चालू आदेश) अधिनियम, 1946 के तहत इससे संबंधित प्रावधानों को सम्मिलित करना चाहिए। इसके अलावा इन नियमों को उचित रीति से वितरित, सूचित एवं प्रकाशित भी किया जाना चाहिए।
प्रत्येक संस्था में नियोक्ता को पीडि़ता की शिकायत सुनने एवं उसके निस्तारण के लिए समुचित प्रणाली विकसित करनी चाहिए। इसके अलावा एक शिकायत समिति का भी गठन किया जाना चाहिए जिसक अध्यक्ष अनिवार्यतः महिला होनी चाहिए। बतौर सदस्य इस समिति में भी भागीदारी कम-से-कम आधी होनी चाहिए।
कार्य स्थल पर शोषण के मामलों में उत्पीडि़त महिला को स्वयं का अथवा आरोपी उत्पीड़क का स्थानांतरण कराने का अधिकार मिलना चाहिए।
कार्य स्थल पर शोषण के मामलों में नियमानुसार भारतीय दंड संहिता अथवा किसी अन्य कानून के तहत दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
यदि महिलाओं के साथ शोषण कार्यालय से बाहर किसी व्यक्ति द्वारा किया जा रहा हो, तो नियोक्ता द्वारा उस महिला को समुचित मार्गदर्शन एवं सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
केंद्र् एवं राज्य सरकारों को इस आदेश द्वारा जारी दिशा-निर्देश एवं कानून, निजी क्षेत्रों में भी प्रभावी कराने का प्रयास करना चाहिए।
ये दिशा-निर्देश मानवाधिकार संरक्षण कानून, 1993 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लघंन नहीं करेंगे।
समवेततः कामकाजी महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को रोकने के लिए हमारे पास पर्याप्त नियम-कायदे और कानून मौजूद हैं। आज जरूरत नए कानून बनाने के मुकाबले पुराने कानूनों को ही सख़्ती से लागू करने की है। यदि वर्तमान में उपलब्ध दिशा-निर्देशों का सही ढंग से पालन किया जाए, तो कार्य स्थल पर कामकाजी महिलाओं के साथ शोषण को काफी हद तक रोका जा सकता है।
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