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सरकार के लिए बोझ है : सब्सिडी

सरोकार
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कल भारत के वित्त मंत्री श्री श्री 1008 प्रणव बाबा द्वारा 2012-13 का बजट पेश किया गया। प्रस्तुत बजट में बाबा ने बहुत सारी वस्तु ओं को मंहगा और कुछ वस्तुओं को सस्ता तो किया, परंतु वो आम जनता के उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट को पेश करके जैसे गरीब जनता की टूटी हुई कमर पर लात रख दी है, क्योंकि ये मंत्री अपने हितों की पूर्ति हेतु किसी भी निछता तक जा सकते हैं। वैसे बजट से जनता जो उम्मीदें लगाये बैठी थी, उस पर पानी फेर दिया गया है। और अपने बयान पर बाबा ने यह भी कहा कि जो सब्सिडी जनता को दी जा रही है वो सरकार के लिए बोझ है।
ठीक है जो सब्सिडी सरकार द्वारा जनता को मुहैया करवायी जाती है उसे सरकार अपने उपर बोझ मानती है। परंतु क्यार सरकार उन सब्सिडी को बोझ नहीं मानती जो नेताओं को दी जाती है। रहने से लेकर खाने तक, आने से लेकर जाने तक, पहनने से लेकर पहनाने तक, सब कुछ मुफत होता है, इन नेताओं का। तो इस राहत को बोझ क्यों नहीं मानती है सरकार। खत्म कर देना चाहिए,नेताओं को मिलने वाली सारी सुविधाएं। क्योंकि ये भी सरकार के उपर बोझ ही तो है।
हालांकि प्रस्तुत बजट इस जिन्द की तरह बढ़ती हुई मंहगाई को बोतल में बंद नहीं कर सकता। उनसे तो अपने जैसे कई जिन्द और पैदा कर दिए हैं जो दिन-प्रतिदिन गरीब जनता को निगलने के लिए काफी होंगे, इससे केवल और केवल आम जनता ही प्रभावित नहीं होगी, साथ ही साथ मध्याम वर्गीय परिवार भी प्रभावित होंगे।
हम शायद कुछ न करने के लिए ही सक्षम है, और तमाशा देखने के लिए स्वतंत्र भी। देख तमाशा मंहगाई के बजट का, और छीन लो गरीब जनता को दी जाने वाली सब्सिडी।

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