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आधुनिकता की मिसाल-विधान सभा में अश्लील वीडियों- JUCTION FORUM

सरोकार
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मैं यहां किसी नेता का नाम नहीं लेना चाहूंगा, क्योंकि मुझे नेताओं से और उनके कूकर्मों से घिन्न होती है। जागरण जंक्शन द्वारा उठाया गया मुद्दा, विधान सभा में अश्लील वीडियों-क्या दम तोड़ रही है हमारी नैतिकता या यह आधुनिकता की देन है। तो मैंने बहुत सोचने के बाद संचार माध्यमों को ही कठघरे में खड़ा किया है। क्योंकि जब से संचार क्रांति का तीव्र गति से विकास हुआ है तब से ही अश्लीलता अपने चरम पर पहुंच गई है।
आज मीडिया ने कुछ नेताओं द्वारा विधान सभा में मोबाईल फोन पर अश्लील वीडियों को देखना दिखाया है। यह मीडिया के लिए एक बे्रकिंग ख़बर थी,जिसको बढ़ा-चढ़ाकर परोसा गया। मैं यहां तथाकथित मीडिया से एक सवाल पूछना चाहता हूं, कि क्या कभी उसने यह जानने की कोशिश की कि, बाजार में और समाज में अश्लील वीडियों कहां से आता है? और इस पर कैसे रोक लगाई जाए। क्या मीडिया संस्थानों का ध्यान कभी इस ओर नहीं गया? गया भी हो तो क्या फर्क पड़ता है। वैसे भारतीय समाज में अश्लीलता सदियों से व्याप्त रही है। जिसको भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। परंतु समाजशास्त्रियों तथा बुद्धजीवियों ने अश्लीलता को असभ्यता से जोड़कर देखा है। ज्यों-ज्यों सभ्यता का विकास हुआ त्यों-त्यों समाज ने अश्लीलता को नग्नता से जोड़ दिया।
आज अश्लीलता दिन-प्रतिदिन अपनी चरम सीमा को लाघंते हुए बाजार तक पहुंच गया है। इस अश्लीलता को सभ्य समाज ने कभी भी मान्यता प्रदान नहीं की। परंतु वो ही समाज अब धीरे-धीरे उसका समर्थन करने लगा है। इसका मूल कारण कुछ भी हो सकता है, चाहे मजबूरी कहें या वक्त की मांग। समर्थन तो दे दिया है।
यह बात सही है कि जब से इंटरनेट और मल्टीमीडिया मोबाईल फोन आया है तब से अश्लीलता का जिन्न बंद बोतल से बाहर की हवा खाने लगा है। पहले अश्लीलता लुके-छिपे बहुत कम संख्या में अश्लील साहित्यों में प्रकाशित होती थी। परंतु टी.वी. और इंटरनेट ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। इस मुखरता और आर्थिकीकरण ने अश्लीलता को बाजार की दहलीज तक पहुंचा दिया है। ध्यातव्य है कि, अश्लीलता का आरोप हम केवल-और-केवल पश्चिमी देशों पर नहीं मड़ सकते, कि सिर्फ वहां से ही अश्लीलता का बाजार गरमाता है और उसकी गरमाहट हमारे देश तक आती है। यह बात हमारे देश पर भी लागू होती है कि अश्लीलता के बाजार की आग हमारे यहां भी जलायी जा रही है। वो भी बिना रोक-टोक के। अश्लीलता की अग्नि को रोकने के लिए बने कानून भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं, इसलिए अब यह बाजार कानून को मुंह चिड़ाता हुआ खुल्लम-खुल्ला चलाया जा रहा है।

आज बाजार में अश्लील साहित्यों से लेकर, विज्ञापन, खबरें, पोर्न फिल्में सभी कुछ उपलब्ध है। एक सर्वे के अनुसार, ‘‘लगभग 386 पोर्न साइटें अश्लीलता को बढ़ावा दे रही हैं, जिस पर करोड़ों लोग प्रतिदिन सर्च करते हैं।’’ इसके साथ-साथ प्रतिदिन भारत में 10-12 नई अश्लील किल्पें बाजार का रूख कर लेती हैं। एक बात पर गौर किया जा सकता है कि अश्लीलता युवा पीढ़ी के साथ-साथ नन्हें हाथों में चली गई। जिसको रोकना आज नमुमकिन है। आज के परिप्रेक्ष्य में कहें तो 5 साल के बच्चों के हाथों में मोबाईल फोन आसानी से देखा जा सकता है। वैसे बड़े घरानों के लड़के-लड़कियों को आसानी से उनकी जिद पर मल्टीमीडिया फोन उपलब्ध करवा दिया जाता है। जिसका उपयोग देर रात तक बातों और न जाने किस-किस काम के लिए उपयोग होता है, यह शायद ही फोन देने वाला गौर करता हो। फिर चाहे बच्चे इससे अश्लील एमएमएस बनाए या अश्लील वीडियों देखें। हां युवा पीढ़ी है टेक्नीकल तो होनी ही चाहिए, चाहे अश्लीलता के क्षेत्र में क्यों न हो? कभी मीडिया का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं गया। और हम बात करते है दम तोड़ती हमारे या समाज की नैतिकता की। कहां गायब है नैतिकता? आज हर जगह से नैतिकता गायब हो चुकी है। हम नैतिकता का रोना रोये, या आधुनिक समाज के विकास का उल्लास मानये, समझ से परे की बात है। वहीं मीडिया विधान सभा में चंद नेताओं द्वारा अश्लील वीडियों को उठा रहा है कि यह नैतिकता का हनन है या आधुनिकता की मिसाल। इसे मिसाल का दर्जा देना ही उचित रहेगा क्योंकि आधुनिकता के आते ही नैतिकता का पतन पहले ही हो चुका है अब तो इसको अपनाने की बारी है। चाहे मौन स्वीकृति देकर या खुल्लम-खुल्ला समर्थन देकर। स्वीकार तो करना ही पड़ेगा?

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