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राजनीति में बरकरार रहेगा अपराधिकारण

सरोकार
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अंग्रेजी के ‘सी’ अक्षर से शुरू होने वाले तीन शब्द जो पूरी व्यवस्था को भूकंप की तरह डगमगा रहे हैं। जिसमें करप्शन (भ्रष्टाचार), क्रिमनलाइजेशन (अपराधीकरण) और कास्टिज्म (जातीयता)/कम्युनलिज्म (सांप्रदायिकता) एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो दिन-प्रतिदिन हमारे जीवन और व्यवस्था को खोखला करने पे उतारू हो चुके हैं। वहीं राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का मेल (करेला ऊपर से नीम चढ़ा) खतरनाक साबित हो रहा है जिस करण से हमारे प्रजातंत्र व राजनीति के सामने गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है। सीधे तौर पर कहा जाये तो, भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का ताल्लुक बेकारी, अशिक्षा, क्षीण स्वास्थ्य सेवाओं आदि से है जिसका सीधा असर देश पर पड़ता है।
इस संदर्भ में बात की जाए तो स्वतंत्रता प्राप्ति से भी पहले भ्रष्टाचार अपना वीभत्स रूप दिखाने लगा था और यह भ्रष्टाचार खासतौर से 1935 में कानून के तहत राज्यों में बनी लोकप्रिय सरकारों के अस्तित्व में आने के बाद और पनपने लगा। इसी भ्रष्टाचार के धुसपैठ के चलते राजनीति में अपराधीकरण (अपराधियों और राजनीतिज्ञों के बीच साठ-गांठ) का बोलवाला शुरू हो गया। इसकी शुरूआत राजनीतिज्ञों द्वारा चुनावों में अपराधियों की मदद लेने से हुई थी। मोटे तौर पर, चुनावों में अपराधीकरण का अर्थ है,-
1.राजनीतिज्ञों द्वारा ‘पैसा’ और ‘बाहुबल’ का प्रयोग, खासतौर से चुनाव के दौरान
2.सत्ता में रहने वाले राजनीतिज्ञों द्वारा अपराध में सहायता और बढ़ावा देना तथा अपराधियों को शरण देना, इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर कानून लागू करने वाले एजेंसियों की कार्रवाही में भी दखल दी जाती है।
3.प्रशासन का राजनीतिकरण, खासतौर से पुलिस विभाग का, इसकी वजह से प्रभावशाली राजनीतिज्ञों को दखल अंदाजी करने दी जाती है और कई बार तो उन्हें विशेष सुविधाएं भी मुहैया करवाई जाती है।
4.हत्या, लूटपाट, अपहरण जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त व्यक्तियों का राज्यसभा और लोकसभा में चयन तथा
5.सरकार में अपराधियों को प्रतिष्ठित पद या सम्मान मिलना जैसे, मंत्री या राज्यपाल बनना आदि।
इस तरह, आज हम न सिर्फ राजनीति के अपराधीकरण का सामना कर रहे हैं बल्कि उससे भी घृणित अपराधियों के राजनीतिकरण का भी मुकाबला कर रहे हैं। एक समय ऐसा आया जब अपराधियों को एहसास हुआ कि राजनीतिज्ञों की मदद करने की बजाए वे स्वयं ही विधानसभा या संसद में क्यों न प्रवेश करें और मंत्री पद हासिल करें ताकि भविष्य में उनकी अपराधिक गतिविधियों के लिए इसका इस्तेमाल भी हो सके।
यह बात सही है कि राजनीति के अपराधीकरण का पहला शिकार प्रशासन और पुलिस बने, इसके परिणामस्वरूप कानून की एक व्यवस्था तैयार हुई जो न तो ईमानदार है और न निष्पक्ष। पुलिस सेवा की नैतिकताएं पूर्णतयः ताक पर रख दी जाती हैं और इसकी वजह से सुव्यवस्थित अपराध के विकास को प्रोत्साहन मिलता है, खासतौर पर बड़े शहरी क्षेत्रों में। अब परंपरागत अपराध जैसे- उठाईगिरी, चोरी, संेधमारी, छीनाझपटी और डकैती के दिन लद गए हैं जबकि पहले इन्हीं अपराधों का मुकाबला करना होता था। आज ‘संगठित अपराध’ पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इसमें जबरन वसूली (व्यापारियों, बिल्डरों और अब तो फिल्म निर्माताओं से भी) फिरौती के लिए अपरहण, शहरी संपत्ति को जबरन हथियाना और बेचना, मादक दृव्यों का व्यापार, हथियारों की तस्करी और जघन्य हत्याएं।
आज कल हमारे सार्वजनिक जीवन में गंदगी फैला रहे ऐसे व्यवस्थित अपराधियों के दल राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय बन चुके हैं क्योंकि वे इतना अधिक मुनाफा कमा रहें हैं कि इससे कई देशों की अर्थव्यवस्था ठप्प हो सकती है। चूंकि वे अपने काम के लिए हिंसा, धमकी और भ्रष्टाचार के लिए तैयार रहते हैं। इन अपराधों का कहीं-न-कहीं सीधा संबंध नेताओं से भी है जो अपने स्वार्थ के चलते आम जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं और इन अपराधियों की मदद के साथ-साथ इनको अपनी पार्टियों में भी जगह देने से नहीं हिचकिचाते।
इसी परिपे्रक्ष्य में कहें तो आज अधिकांश नेता किसी-न-किसी अपराध में लिप्त हैं कई नेताओं पर एक से भी अधिक केस चल रहे हैं, जिसको या तो समय-समय पर विपक्षी पार्टियां उठाती रहती हैं और प्रभावी लोग पैसों और पावर के बल पर दबाते रहते हैं। यह समाज के लिए गहरी चिंता का विषय बना हुआ है। क्योंकि इन्हीं भ्रष्टाचारियों और नेताओं के चलते समाज में अपराधों का आंकड़ा चरम सीमा पर चुका है।
मैं इस आलेख को अपूर्ण ही छोड़ रहा हूं क्योंकि यह कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता। जब तक ये नेता रहेगें तब तक तो कभी नहीं।

गजेन्द्र_१२५@रेदिफ्फ्मैल.com

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