Menu
blogid : 5215 postid : 143

विश्वशान्ति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (अतीत, वर्तमान और भविष्य)

सरोकार
सरोकार
  • 185 Posts
  • 575 Comments

आज हम सभी इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। इस नई सदी को विज्ञान युग कहा जाता है। वर्तमान विज्ञान युग में मानव ने जो तरक्की की है वह बिलकुल ही सराहनीय कार्य है। विज्ञान के इस विकास से विश्व समुदाय के लोगों को क्या लाभ हो रहा है, इसको दोनों दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है अर्थात् लाभ और हानि।
मेरे विचार से विज्ञान का विकास दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ विज्ञान मनुष्य की तमाम सुख सुविधाओं का इंतजाम करती है तो दूसरी तरफ संपूर्ण जगत को विनष्ट करने का भी क्षमता रखती है। ज्ञातव्य है कि सृष्टि रचना की दृष्टि से जैवकीय प्राणियों में सर्वश्रेष्उत्तर प्राणी मनुष्य ही है।
आज के विकास युग में विश्व समुदाय के लोग विश्वशांति के लिए लालायित हैं। विज्ञान के विकास के साथ-साथ मनुष्य की सोच और समझ भी प्रभावित हुई है। आखिर कौन-सी ऐसी बात है? आज की समाज में चारों तरफ समस्याओं का ही जाल बिछा हुआ दिखता है। समाज में लूट-खसोट, हत्या, द्वेष, ईष्र्या, व्याभिचार, धार्मिक कट्टरता, आर्थिक असमानता, इत्यादि कई कारण है, जो समाज को खोखला करते जा रहा है। आज राष्ट्र के बीच कलह स्पष्ट रूप से झलकता है।
मानव के अतीत का यदि अध्ययन किया जाय तो पता चलता है, कि वे लोग एक ही पूर्वज के संतान होने से सगोत्र या संबंधी माने जाते थे। आदिमानव हिंसक प्राणियों से बचने के लिए झुड़ या समुह में रहते थे। वे समूह में रहकर ही अन्य हिंसक जानवरों से अपनी रक्षा कर पाये थे। इसी तरह वे हजारों वर्षों तक रहे। उन लोगों में कभी किसी बात पर झगड़ा भी हुआ होगा, किंतु उन्होंने यह भी महसूस किया होगा कि जब तक वे मिलजुलकर नहीं रहेंगे, कुछ नहीं कर सकेंगे। इस तरह वे सहयोग और सहअस्तित्व के वातावरण में दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की करते चले गए।
वस्तुतः आज की स्थिति बिलकुल अलग है, जाति-जाति मैं द्वेष, गोरे-काले में भेदभाव तथा सवर्ण-दलितों में घृणापूर्ण दृष्टि इत्यादि, और भी न जाने कितनी गंदगियां आज के मानव समाज में व्याप्त है कहना मुश्किल है। आज विश्व में कहीं भी शांति नहीं है। दुनिया के लोग परेशान हैं ऐसी परिस्थिति में मानव समुदाय को विश्वशांति के लिए लालायित होना स्वाभाविक है।
आज हम नई पीढ़ी के लोग समूचे ग्लोब को अपना गांव घर मानते हैं। इसी को अंग्रेजी में ‘ग्लोबलविलेज’ कहा जाता है। इसे ग्लोबलाइजेशन, वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण भी कहा जाता है। आज के वैश्वीकरण तथा तकनीकी युग के बदलते परिप्रेक्ष्य में विश्वशांति बहाल करने की समस्या और भी ज्यादा बढ़ गई है। वैश्वीकरण के आने से दुनियां की दूरी कम हो गई है। एक छोर से दूसरे छोर तक की मानव संस्कृति पर काफी प्रभाव पड़ा है। संस्कृति की छीन होने की डर से जातिय नस्लीय श्रेष्ठता तथा पूर्वी एवं पाश्चात्यकरण की आपसी मतभेद भी देखने को मिलती है।
अगर मानव का इतिहास सुख शांति और सहयोग का रहा है तो आज वही पूर्वजों के मानवसमुदाय विश्वशांति के लिए क्यों तरस रहा है? इसका एक मात्र जवाब यही होगा कि आज के मानव में मानवीयता नाम की कोई चीज नहीं रही। पूरे विश्व में कभी जाति या नस्ल के नाम पर, तो कभी धर्म के नाम पर आपसी संघर्ष देखने को मिलते है। जब तक मनुष्य अपने मस्तिष्क में मानवीयता एवं मैत्रीभाव को तरजीह नहीं देंगे तब तक इस तरह की आपसी संघर्ष का ये सिलसिला चलता रहेगा।
यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि समाज में व्याप्त सभी तरह की बुराइयां और अलग-अलग तरह की समस्याओं का छिटपुट हल संभव नहीं है। आज आप जैसे हैं, वैसे ही अपने को बनाये रखते हुए भ्रष्टाचार उन्मूलन या बेकारी निवारण नहीं कर सकते। इसके हर व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक परिवर्तन यानी समग्रता से विचार करना होगा। आज मानव समाज के हर जागरूक नागरिक से यही उम्मीद है कि वे इस पर विचार मंथन करें।
आधुनिक समाज नई शताब्दी में बाद से ज्ञान विज्ञान, जीवन मूल्यों एवं बौद्विक विकास के नये नये विचार आये। ये विचार उनके अपने समाज के पुरातन काल में चल रही मूल्य व्यवस्थाओं एवं ज्ञान व्यवस्थाओं से भिन्न थे। इसी कारण उन्होंने आधुनिकता की स्थापना पुरातन के विरोध व वैषम्य के रूप में की। उनके चिंतन के अनुसार ‘आधुनिक सत्यमुखी एवं वैज्ञानिक हैं। जबकि पुरातन या परंपरागत विचार रूढ़ीवादी, अवैज्ञानिक एवं प्रगति विरोधी है। बहुत से लोगों का मानना है कि आधुनिक समाज सत्यनिष्ठ, वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील है, एवं इसी कारण यह आदर्श भी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से से यदि हर व्यक्ति मानववाद की बात करे तो यह विज्ञान शब्द सार्थक साबित होगा।
भारत के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यदि दुनियां को देखा जाय तो युग काल की चक्रीय अवधारण रही है- सत् युग, द्वापर युग से होते हुए कल-युग एवं कलयुग की समाप्ति के बाद पुनः नये चक्र की शुरूआत है। कहने का तात्पर्य है कि भारत की दृष्टिकोण सत् युग से शुरू हुआ था और कलयुग में खत्म होता है। सत् युग अर्थात् सत्य, सहयोग, सहअस्तित्व, मैत्रीभाव इत्यादि। दूसरा कलयुग से स्पष्ट है कि आज का वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन। इस बात से स्पष्ट है कि पूर्वी एवं पश्चिमीकरण की अवधारण जो भी रहा हो, किंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आदि मानवों में सहयोग, सहअस्तित्व एवं मैत्रीभाव की भावना मौजूद था।
इस तरह से मानव का इतिहास गवाह है कि मानव जीवन सुख शांति तथा आपसी सहयोग का रहा है तो आज का मानव ने अपना इतिहास भूल गए होंगे। आज इसी को मंथन करने की आवश्यकता है।
आज विश्व के सामने कई सारी चुनौतियां है जैसे-वैश्विक आतंकवाद, आर्थिक असमानता, समता, स्वतंत्रता तथा बंधुत्व इत्यादि। इन सबके अलावा पूरे मानव सुमदाय के लिए एक बड़ी चुनौती तो विश्वशांति ही है। विश्व मैं शांति की स्थापना कैसी हो उसके लिए लोग चिंतित हैं। आतंकवाद से तो आज पूरे विश्व के लोग परिचित हैं। इस हिंसा को रोकने के लिए ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अहिंसा को प्रोत्साहित किया है। हिंसा में यदि शक्ति है तो अहिंसा में अपार शक्ति निहित है जो विश्वशांति के लिए जरूरी है अर्थात् प्रेम और भाईचारा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh