Menu
blogid : 5215 postid : 105

अश्लीलता का बाजार- गंदा है पर धंधा है ये?

सरोकार
सरोकार
  • 185 Posts
  • 575 Comments

भारतीय समाज में अश्लीलता सदियों से व्याप्त रही है। जिसको भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। परंतु समाजशास्त्रियों तथा बुद्धजीवियों ने अश्लीलता को असभ्यता से जोड़कर देखा है। ज्यों-ज्यों सभ्यता का विकास हुआ त्यों-त्यों समाज ने अश्लीलता को नग्नता से जोड़ दिया। हालांकि सदियों से मौजूद नग्नता को अश्लीलता नहीं माना जाता था, क्योंकि देखने का नजरियां, उनका दृष्टिकोण कुछ अलग था।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अश्लीलता को नारी शरीर से जोड़ दिया है। यह अश्लीलता नारी शरीर से जुड़ा एक ऐसा पहलू है जिसमें लगातार पुरूष का दृष्टिकोण परिवर्तित होता रहता है। यह परिवर्तन अभी तक अपने से इतर सभी पर लागू होता था, परंतु अब घर की चारदीवारी में भी प्रवेश कर चुका है। क्योंकि पुरूष की मानसिकता में जो बदलाव आया है उस बदलाव के कारण वो सभी को कामुक दृष्टि से निहारने लगा है। जिसका साथ वर्तमान परिदृश्य लगातार दे रहा है।
आज अश्लीलता दिन-प्रतिदिन अपनी चरम सीमा को लाघंते हुए बाजार तक पहुंच गया है। इस अश्लीलता को सभ्य समाज ने कभी भी मान्यता प्रदान नहीं की। परंतु वो ही समाज अब धीरे-धीरे उसका समर्थन करने लगा है। इसका मूल कारण कुछ भी हो सकता है, चाहे मजबूरी कहें या वक्त की मांग। समर्थन तो दे दिया है।
यह बात सही है कि जब से निजी चैनलों का आगमन हुआ तब से इसमें वृद्धि हुई है, और इस वृद्धि में तीव्रता इंटरनेट ने ला दी है। पहले अश्लीलता लुके-छिपे बहुत कम संख्या में अश्लील साहित्यों में प्रकाशित होती थी। परंतु टी.वी. और इंटरनेट ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। इस मुखरता और आर्थिकीकरण ने अश्लीलता को बाजार की दहलीज तक पहुंचा दिया है। जो आज पूंजी कमाई का सबसे आसान जरीया बन चुका है। अश्लीलता के इस धंधे में छोटे-से-छोटे अपराधियों से लेकर, बडे़-से बडे़ माफियाओं, बाहुवलियों, समाज के सभ्य बुद्धजीवियों और-तो-और समाज को आईना दिखाने वाला मीडिया भी उतर चुका है। क्योंकि मीडिया भी इस बाजार की चकाचैंध से अपने आपको बचा नहीं सका। मीडिया में प्रकाशित विज्ञापन हो या फिर चैनलों में प्रसारित खबरें? अश्लीलता पूरी तरह साफ देखी जा सकती है। वहीं मीडिया यह कहकर अपना पल्ला झांड देता है, कि जो बिकता है हम वही दिखाते हैं। बिकने का क्या है? आज हर चीज बिकाऊ हो चुकी है। मिर्ज़ा गालिब़ ने ठीक ही कहा था- ‘‘हमको मालूम न था क्या कुछ है बेचने को घर में, ज़र से लेकर ज़मी तक सब कुछ बिकाऊ है।’’ उसी तर्ज पर मीडिया विज्ञापनों और खबरों को और गरमाता जा रहा है। जिससे उनके चैनलों की आमदनी में इजाफा हो सके। इस गरमाहट के बाजार का मुख्य कारण कम व्यय में अधिक आमदनी भी है। जिससे इस बाजार में हर कोई आने की होड़ में दिखाई दे रहा है।
ध्यातव्य है कि, अश्लीलता का आरोप हम केवल-और-केवल पश्चिमी देशों पर नहीं मड़ सकते, कि सिर्फ वहां से ही अश्लीलता का बाजार गरमाता है और उसकी गरमाहट हमारे देश तक आती है। यह बात हमारे देश पर भी लागू होती है कि अश्लीलता के बाजार की आग हमारे यहां भी जलायी जा रही है। वो भी बिना रोक-टोक के। अश्लीलता की अग्नि को रोकने के लिए बने कानून भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं, इसलिए अब यह बाजार कानून को मुंह चिड़ाता हुआ खुल्लम-खुल्ला चलाया जा रहा है।
आज बाजार में अश्लील साहित्यों से लेकर, विज्ञापन, खबरें, पोर्न फिल्में सभी कुछ उपलब्ध है। एक सर्वे के अनुसार, ‘‘लगभग 386 पोर्न साइटें अश्लीलता को बढ़ावा दे रही हैं, जिस पर करोड़ों लोग प्रतिदिन सर्च करते हैं।’’ वहीं टी.वी की बात क्या करें? विज्ञापन और खबरों की आड़ में मानों पोर्न परोस रहे हो। क्योंकि यह अश्लीलता बिन बुलाए मेहमान की तरह सीधे हमारे घरों में प्रवेश कर चुका है। चाहे कॉडोम का प्रचार हो या फिर बलात्कार की खबरें। अश्लीलता इतनी भर दी जाती है जिसे देखकर हर कोई शर्मसार हो न हो पर, घर में सबकी निगाहें यह बताने का भरकर प्रयास करती हैं, कि हमने कुछ नहीं देखा। वहीं कुछ पत्रिकाएं तो इस पर अपना विशेषांक भी निकाल रही हैं। चाहे इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव ही क्यों न पड़ें। क्योंकि जो चीज लगातार हमारे समझ परोसी जाती है उसके प्रति मनुष्य की मानसिकता बन ही जाती है। इस मानसिक बदलाव के चलते पुरूषों में कामुकता बढ़ना स्वाभिक है। बढ़ती कामुकता के कारण, समाज में अश्लील हरकतें, बलात्कार, प्यार के नाम पर धोखा देना, फिर उसकी अंतरंग तस्वीरों को खीचना, उसको ब्लैकमेल करना, उससे पैसे की मांग करना, उसक एम.एम.एस. बनाकर सार्वजनिक करना आम हो जाता है, और समाज में महिलाओं के प्रति अपराध में इजाफा होने लगता है। मैं केवल पुरूषों की मानसिकता पर इल्जाम नहीं लगा रहा हूं, इस अश्लीलता के वातावरण ने पुरूष हो या स्त्री, सभी को अपनी चपेट में ले लिया है। वहीं स्त्री अपने आपको उच्च स्तर पर पहुंचाने के लिए इसका सहारा लेने से भी नहीं चूकती। यही हो रहा है।
समाज में व्याप्त इस अश्लीलता का कौन जिम्मेदार है? यह कहना मुश्किल है। बस यहां यही कहा जा सकता है कि गंदा है पर धंधा है ये?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh