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मुख्यामंत्री जी ये आप क्या करने जा रही हैं

सरोकार
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उत्तर प्रदेश में चौथी बार मुख्यामंत्री के पद पर विराजमान मायावती अपने किसी स्वार्थ पूर्ति के चलते उत्तर प्रदेश का बंटवारा करने पर उतारू हो गयी है। शायद ये अंग्रेजों की किसी रणनीति को अपने राजनीतिक क्रियाकलापों में ग्रहण कर, बंटवारा चाह रही हैं। जो अंग्रेजों ने किया उसी तर्ज पर मायावती चल रही हैं, यानि फूट डालों और शासन करो। शासन करने का ये कौन-सा नियम है समझ से परे की बात लगती है कि एक प्रदेश के इतने बंटवारे कर दिए जाए कि कुछ समय सीमा के उपरांत के बाद हम आपस में ही लड़ने लगे।
जैसा कि सभी जान रहे हैं कि मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को चार भागों में विभाजित करने का प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं। अगर ये प्रस्तार केंद्र सरकार द्वारा भी पारित कर दिया गया तो उत्तर प्रदेश चार भागों बंटने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि किसी दबाव के चलते केंद्र सरकार को यह फैसला मानना पड़ सकता है। शायद सरकार को गिरने से बचाने के लिए। फिर चार मुख्यमंत्रियों का कब्जा उत्तर प्रदेश पर होगा। जो थोड़ा कुछ विकास हो रहा है गरीब जनता का, वो भी पूर्ण रूप से रूक जायेगा। क्योंकि इन मंत्रियों को अपनी झोली भरने से फुरसत ही कहां मिलेगी।
उत्तर प्रदेश का एक बंटवारा पहले भी हो चुका है जिसे हम उत्तराखंड़ के नाम से जानते हैं। इस प्रदेश के उत्तर प्रदेश से विभाजित होने पश्चात् उत्तराखंड़ का तो विकास हुआ, वहीं उत्तर प्रदेश के विकास की गति में एक और अवरोध उत्पन्न हो गया। यदि ऐसे ही बंटवारे का सिलसिला चलता रहा तो एक दिन उत्तर प्रदेश के कई भाग हो जाएंगें। ऐसा भी हो सकता है कि पूर्व में चलती रही राजा-रजवाड़ों की प्रथा, फिर से अपने पुरजोर पर हावी हो जाएगी। जितने जिले अभी हैं उतने प्रदेशों में तबदील हो जाएंगें, जिसमें किसी-न-किसी नेता की हुकूमत चलेगी। और वो जनता को कहीं अधिक लूट सकेगा। ध्यातव्य है कि हमारा देश एक बंटवारे की मार पहले ही झेल चुका है जिसकी मार हम आज भुगत रहे हैं। मैं पाकिस्तान के भारत से अलग होने की बात कर रहा हूँ।
इस परिप्रेक्ष्य में कहें तो क्या घरों का बंटवारा करने से कभी विकास हुआ है। जो गरीब है वो गरीब रह जाता है, जो अमीर है और अमीर बन जाता है। आज मुख्यामंत्री प्रदेश का हिस्सा करने पर अमादा हैं, तो कल दूसरा मुख्य मंत्री उसी प्रदेश को और भागों में विभाजित करवा देगा। यही सिलसिल चलता रहेगा, फिर एक दिन ऐसा भी हमारे समक्ष आ खड़ा होगा जब प्रदेश के कई हिस्से हो चुके होंगे और हर हिस्सा अपने आप में एक प्रदेश तो होगा पर जाति पर आधारित। कि फलां प्रदेश इस जाति का है और फलां इस जाति का। साफ शब्दों में कहा जाए तो जातिगत बंटवारा। यह बंटवारा कहीं-न-कहीं एक संकेत दे रहा है कि हम फिर से गुलामी की ओर बड़ी तेजी से बढ़ हैं। और सब-के-सब बुद्धजीवी लोग चुपचाप हाथों-पे-हाथ रख कर तमाशा देखने में लगे हुए हैं। कोई इसके विरोध में आवाज उठाने की जहमत नहीं करना चाह रहा है। क्योंकि सभी पार्टियों को इसमें अपना-अपना उल्लू सीधा करने को मिल जाएगा। पर वो आने वाले संनाटेपूर्ण विनाश की तबाही से बेखबर, अपनी-अपनी रोटियां सकने में तुल हुए हैं।
मेरा तो यही कहना है कि उत्तर प्रदेश की जनता को इस बंटवारे का पूर्णरूप से विरोध करना चाहिए, ताकि विकास के नाम पर होने वाली तबाही से हम सब बच सके। नहीं तो एक दिन यहीं नेता हम सबको बेच देगें,और हम यही कहेंगे कि अब पछतायें होत क्या, जब चिडियां चुग गई खेत।

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