Menu
blogid : 5215 postid : 90

क्या होगा उत्तर प्रदेश का

सरोकार
सरोकार
  • 185 Posts
  • 575 Comments

कुछ महीने और बाकी हैं और वो समय जल्द् ही हमारे नजदीक आ जाएगा जब उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से चुनाव का बाजार गर्म होगा। और यह बाजार का भाव (चुनाव के परिणाम) यह निर्धारित करेंगा, कि उत्तर प्रदेश का अगामी मुख्यमंत्री कौन बनेगा। कौन पांच साल तक गरीब जनता पर राज करेगा। वैसे अभी से सभी पार्टियों के कार्यकर्ता आने वाले चुनाव के लिए जी-तोड़ कोशिश में जुट गये हैं। सभी पार्टियां ये आश लगाये हुए हैं कि अगामी मुख्यमंत्री हमारी ही पार्टी का होना चाहिए। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री पुन: गद्दी पर विराजमान होने के गुनताड़े बिठाने में लगीं हैं। शायद हमें परिणामों की बात नहीं करनी चाहिए, जब चुनाव होंगे तो स्व़त: सभी को ज्ञात हो जाएगा कि ऊंठ किसी करवट बैठेगा।
इस आलोच्य में देखा जाए तो आजादी के बाद से बहुत-सारे मुख्यमंत्रियों ने उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाली। कभी कांग्रेस, कभी भाजपा, कभी सपा, तो कभी बसपा। जिसका क्रम लगातार चलता रहा। और सभी मुख्यमंत्रियों द्वारा यही बयान दिया गया कि उत्तर प्रदेश का विकास हो रहा है। किस तरह का विकास है जो सिर्फ मुंह जबानी या कागजों में दिखाई देता है और जिसे विकास को नाम दे दिया जाता है। हां ये बात सोलह आने सही है कि विकास तो हुआ है पर किसका, यह भविष्य के गर्द में है। परंतु विकास उत्तर प्रदेश का नहीं हुआ, बल्कि मुख्यमंत्रियों और उनके रिश्तेदारों व पार्टियों के कार्यकर्ताओं का हुआ। जिन्होंने दिन दूनी-रात चौगनी तरक्की की है, इजाफा किया है अपनी कमाई में।
मैं किसी पार्टी विशेष पर इल्जाम नहीं लगा रहा हूँ। मैं सिर्फ विकास बता रहा हॅू कि विकास हुआ है। चाहे जिसका हुआ हो। वैसे सभी ने विकास के नाम पर लूटा बहुत। किसी ने आवास के नाम पर, किसी ने अधिकरण के नाम पर, किसी ने मनरेगा के नाम पर, किस ने रोजगार के नाम पर, किसी ने भर्तियों ने नाम पर, किसी ने बैकलोक के नाम पर, किसी ने पैंशन के नाम पर। लूटा सभी ने है। किसी ने कम लूटा तो किसी ने अति से भी अधिक। और इस लूट का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
यह बात कहने में गलत नहीं होनी चाहिए कि नेताओं ने गरीब जनता को लूट-लटकर अपने घर में रोशनी की है। जिसको जनता ने अपनी किस्मत मान लिया है। इसी बदनसीबी और अपनी भूल को बदलने के लिए जो उन्होंने पांच साल पहले की थी। पर होता ढांक के तीन पात। कि सांज हुई सजने लगे कोठों के बाजार, और ग्राहक मन का न मिल बदन लुटा सौ बार।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh