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5 नवम्बंर, 2011 पूरे 11 साल हो चुके हैं, एक महिला को अनशन पर बैठे हुए। हम और हमारा सभ्यं समाज, देश मौन होकर तमाशवीन की भांति तमाशा देख रहा है। मैं उन लोगों को बता दूं जो इनके बारे में नहीं जानते। जी हां मैं इरोम शर्मिला चानू की ही बात कर रहा हूं। जो अपने समाज के अधिकारों की लड़ाई के लिए पिछले 11 साल से लगातार अनशन पर बैठी है। जिसने अपने जीवन के अमूल पल सरकार द्वारा थोपे गये कानून सशक्त बल विशेषाधिकार अधिनियम (ए.एफ.एस.पी.ए.) के लिये गंवा दिये।
अगर पूरे मामले पर विस्तार से गौर किया जाए तो हकीकत खुद-ब-खुद सबके सामने आ जाएगी कि जब से सरकार द्वारा मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पारित किया गया. और जिसका फायदा उठाकर सशस्त्र बलों ने 12 लोगों को दिन दहाड़े गोलियों से भून दिया. यह एक घटना नहीं थी बल्कि ऐसी बहुत-सी मानवाधिकार हनन की घटनायें आये दिन मणिपुर में होती रहती हैं; इसी के विरोध में 5 नवम्बर, 2000 से इरोम शर्मिला अनशन पर बैठी हैं। वो चाहती हैं कि मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (ए.एफ.एस.पी.ऐ.) को हटा दिया जाए. जिसके तहत अशांत घोषित क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को सरकार द्वारा विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं। जिसका फायदा सशस्त्रि बल आये दिन उठाते रहते हैं। सरकार द्वारा इन सेना बलों को कुछ ऐसे विशेष अधिकार प्रदान किये गये हैं जो राज्यन सरकार द्वारा पारित कानून के उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं भले ही इसमें किसी की जान क्यों न चली जाए. इसका परिणाम यह है कि सैनिक दल इसका दरूपयोग करते हैं. और इस कानून की आड़ में हत्या, बलात्कार, र्टाचर, गायब कर देना और गलत गिरफतारी जैसे कार्य सशक्त बलों द्वारा अंजाम दिए जाते हैं.
मेरे जहन में यह सब देखकर एक बात बार-बार कौंधती है कि क्या हमारा देश वाकैई में आजाद है। या फिर आजाद भारत का एक राज्य अब भी गुलामों की जिंदगी बसर कर रहा है। जहां अंग्रेजों की जगह हमारे सैनिकों ने ले ली है। जो आये दिन मणिपुर की जनता के साथ बर्बरतापूर्ण कार्यवाहियों को अंजाम देते रहते हैं। क्या कारण है कि 58 सालों से अब भी वहां पर सशस्त्र बलों का जमावड़ा लगा हुआ है, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।
मैं और शायद मेरे जैसे हजारों लोगों तत्कालीन व वर्तमान सरकार साथ-ही-साथ कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ये यह प्रश्ना पूछ रहे हैं कि वो कौन-से कारण हैं जिस कारण से अब भी सशस्त्र बल वहां पर तैनात हैं। जिसको अभी तक नहीं हटाया गया। उसी के विरोध में पिछले 11 सालों से अपनी जिंदगी व अधिकारों की लड़ाई को लड़ती इरोम शर्मिला, जिसकी सुध-बुध आज तक किसी सरकार ने नहीं ली और न ही किसी सरकार ने इस बात पर विचार किया कि सशस्त्र बलों की तैनाती अभी भी वहां पर क्यों है। इसे क्या हम सरकार की मिलभगत कहे या फिर लाचारी, जिस कारण से सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है और मणिपुर की जनता को इस तरह के अत्याचार की आग में झोंक रही है।
आज मैं पूरे देशवासियों से यह आवहान करता हूं कि इरोम शर्मिला का साथ दें, और मणिपुर में लागू विशेष सशस्त्र बल अधिनियम को हटाने के लिये सरकार से मांग करें। क्योंकि हमें खुश होने की जरूरत नहीं है ये सरकार गद्दी की आड़ में कही भी ऐसा मंजर करवा सकती है। हम सभी को जागने की जरूरत है नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश के अधिकांश राज्यों में मणिपुर जैसा मंजर दिखेगा।
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