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तत्काल की दुनिया

सरोकार
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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दुनिया कहा से कहा पहुंचती जा रही है। हम कह सकते है कि चांद तक पहुंच चुकी है। पर चांद तक पहुंच के हम क्या करेंगे, ये किसी ने नहीं सोचा। शायद तब तक हमारा बजूद ही न रहे। परंतु पहले ऐसा नहीं था, सभी का बजूद होता था, लोग दिन-रात मेहनत करते थे और लंबी उम्र तक जीवित रहते थे। वो बीमार होते थे और बिना दवाईयों के जल्द ही स्वस्‍थ्‍य भी हो जाते थे। लेकिन आज के भागमभाग की दुनिया में ऐसा देखने को नहीं मिलता। आज की संस्कृति में लोग तत्काल के पीछे दौड़ रहे हैं। रेल व हवाई यात्रा के आरक्षण के लिए तत्काल, कहीं का प्रोग्राम बने तत्काल, किसी से प्यार हो तत्काल, प्यार के बाद रिश्ते बने और फिर बनके बिगड़ जाए तत्काल, स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई तत्काल, कोई काम करना हो तो पैसे दो तत्काल, नेताओं को चुनाव के समय वोट चाहिए तत्काल, किसी बीमारी को ठीक करना हो तो डॉक्टर के पास जाओं तत्काल, एडस चाहिए तो बिना कंडोम के सेक्स करो तत्काल, जेल की हवा खानी हो तो अपराध करो तत्काल, जुर्म करके साफ निकल जाना हो तो जर्ज को खरीदो तत्काल, गरीबों का खून चूसना हो तो नेता बनो तत्काल, घोटाले करना हो तो ए राजा बनो तत्काल, समाज से भ्रष्टाचार मिटाना हो तो अन्ना हजारे बनो तत्काल, मरने के पहले अपनी प्रतीमा बनानी हो तो मायावती बनो तत्काल, मीडिया को बेचना हो तो प्रभु चावला बनो तत्काल, भारत में जुर्म फैलाना हो तो दाउद बनो तत्काल, परीक्षा में पास होना हो तो मुन्ना भाई बनो तत्काल, पढ़ाई पूरी हो चुकी है नौकरी चाहिए तत्काल, पता करना हो पेट में लड़का है या लड़की अल्ट्रा्साउड करवाओं तत्काल और बहुत से ऐसे काम जो तत्काल में किए जाते हैं या कर सकते हैं या हो रहे हैं।
ये तत्काल की दुनिया भी अजीबों-गरीब है। जिसको देख भाग रहा है तत्काल के पीछे। और भाग-भागकर खुद के वो सुखद पल जिनको वो जिया करता था, कब दुखद पल में तबदील हो गये हैं पता ही नहीं चला। अगर इसी तरह तत्काल के पीछे दौड़ते रहे तो ऐसा न हो एक दिन खुद तत्काल बनकर इस दुनिया से ही रूखसत हो जाओ और तुमको पता ही न चले तत्काल।

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