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गांधी और नेहरू की तरह क्यों याद नहीं करते लालबहादुर शास्त्री और भगत सिंह को

सरोकार
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2 अक्टूबर यानी गांधी जंयती, पूरे भारत में बड़े धूम-धाम से मनायी गई. समस्त भारतवासियों ने गांधी को याद किया और उनकी याद में हर साल की तरह इस साल भी जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. परंतु, लगभग देशवा‍सी उस शक्स को भूल गये, जिसका योगदान भी भारत की आजादी में रहा. हां मैं बात कर रहा हूं- लाल बहादुर शास्त्री जी की. जिसको कुछ एक लोगों ने ही याद किया. बाकि सभी गांधी जंयती के जश्न में चूर रहे. सही बात है बड़े लोगों को ही ज्यादा तबज्जों दी जाती है छोटे लोगों को कौन पूछता है. जिस तरह 24 सितंबर का दिन कुछ लोगों को ही याद‍ रहता है, बाकि सभी ……………….. हां मैं भगत सिंह की ही बात कर रहा हूं, सभी अपने अंतरमन में झांककर बोलिए कितने लोगों ने 24 सितंबर के दिन भगत सिंह को याद किया. या फिर 2 अक्टूबर के दिन लाल बहादुर शास्त्री जी को.
इस तरह का भेदभाव कितना उचित है कितना अनुचित. कौन बता सकता है. क्या भगत सिंह या लाल बहादुर शास्त्री ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान नहीं दिया. क्याय केवल-और-केवल अहिंसा के बल पर भारत को आजादी नसीब हो सकी. सोचने की बात है. यदि कोई यह नहीं सोच सकता तो सोचों कि हम उन लोगों को क्यों याद कर लेते है जिसका सरोकर हमको हमारा हक दिलाने में था भी और नहीं भी या फिर जातिगत था, धार्मिक था, या बाहुबली.
ऐसे बहुत सारे महान लोग है जिनको याद किया जा सकता है. परंतु नहीं. हम याद क्यों करें, यही सोच में सभी मदहोश रहते है. यदि पूरे भारत में देखा जाए तो लगभग अधिकांश जगहों पर गांधी, नेहरू और इंदिरा गांधी की प्रतिमायें दिख जायेंगी, यहां तक कि भारतीय मुद्रा पर भी इन्हीं लोगों का दबदबा बरकरार है, परंतु खोजने पर भी भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, लालबहादुर शास्त्री की प्रतिमायें या मुद्रा नहीं मिलेंगी. इसका क्यां कारण है कोई हमको बता सकता है. शायद किसी के पास इसका कोई जबाव न हो. बड़े शर्म की बात है क्योंकि यहां भी कहीं-न-कहीं इन लोगों की जाति ही जिम्मेदवार है यदि ये लोग भी उच्च जाति के होते, तो इन लोगों को भी गांधी, नेहरू की तरह याद कर लिया जाता.
कुछ बड़े विद्वानों का मत है कि गांधी तेरे देश में भांति-भांति के लोग, क्या यह देश सिर्फ गांधी का ही है, नहीं यह देश सिर्फ गांधी का नहीं है यह देश उन सभी का भी है जिन्होंने अपना खून बहाकर इस देश को आजादी दिलाने में बराबर का योगदान दिया. मैं गांधी की अलोचना नहीं कर रहा हूं, पर मैं उन सभी लोगों को याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूं जिनकी कुर्बानी से आज हम आजाद हैं, ये मेरे वतन के लोग जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो वो कुर्बानी.

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