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बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा, क्योंकि सभी की जुबान पर, चाहे आम आदमी हो, मीडिया हो या फिर सरकार, सभी अन्ना अन्ना चिल्ला रहे थे; कोई पक्ष में था तो कोई विपक्ष में, पर नाम तो अन्ना का ही लिया जा रहा था. सभी अन्ना की जमात में अपने आपको शामिल करने की कोशिश में लगे पडे थे, अब शायद शांत हो चुके होगें. लोकपाल बिल पास होने की संभावना बनने लगी है. अन्ना की शर्तों को मान लिया गया है.
मेरी एक बात समझ में अभी तक नहीं आई कि लोकपाल बिल पास हो जाने से भ्रष्टाचार पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा, जो अपनी जडें बरगद के पेड की तरह इस धरती में धसाये हुए बडी तेजी से बढता जा रहा है. क्या ये खत्म हो सकता है. यदि हम सब अपने गिरेवान में झांककर देखे तो कभी न कभी जीवन में हमने भी किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार किया है या उसे बढावा दिया है. सोचो कभी ट्रेन में सीट के लिए टीसी को रूपये देना, कभी अपने बच्चों के एडमीशन के लिए, कभी बिल कम करवाने केलिए, कभी केस जीतने या एफआईआर दर्ज न करने के लिए, साथ तो दिया है. फिर क्यों चिल्ला रहे है. आखिर लत तो हमने ही लगाई है इसे बढाने के लिये. यह भ्रष्टाचार हमारी रग रग में समा चुका है और इतनी आसानी से नहीं जाने वाला. चाहे लोकपाल बिल पास हो जाए या फिर अन्ना की तरह कई और अन्ना खडे हो जाए.
मेरी मानों तो सारे नेताओं को इस देश से निकाल दो, फिर देखों भ्रष्टाचार स्वयं ही खत्म हो जाएगा. क्योंकि सारे फसाद की जड ये नेता ही है
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