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कैसी सरकार है जो अन्ना के अनशन पर गाहे बजाए आखिर मान गई. उसको इतना भी खयाल नहीं है उसे महिला का जो पिछले कई वर्षों से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है. हां मैं बात ईराम शर्मिला की ही कर रहा हूं. न तो किसी को इस बात का ख्याल आया कि उसके बारे में भी सोचा जाए. एक भी की जमात के शामिल तो हो जाते हैं, नहीं सोचते उसके बारे में. सही बात है किसी को क्या फर्क पड़ता है, जब अपने पर बितेगी तब समझ में आएगी.
मैं तो अन्ना से भी एक बात कहना चाहूंगा कि किसी ने नहीं सोचा तो आप तो सोच सकते थे. पर आपने भी कभी नहीं सोचा कि पिछले कई सालों से अनशन पर बैठी ईरोम शर्मिल की बात भी सुनी जाए, उसको भी अधिकार मिले.
ये तो नइंसाफी है शायद शार्मिला अन्ना नहीं है एक आम महिला जो हक की लड़ाई लड़ रहीं है. वैसे तो सदियों से महिलाओं का शोषण, उनके अधिकारों को दोहन होता आया है; और आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी हो रहा है. कितने भी कानून पारित कर लिए जाए, सभी कानून इस समाज के आगे बौने साबित हो चुके है. और मानवाधिकार व महिला आयोग चुप है सरकार के आगे.
मैं अपील कर रहा हूं भारत की जनता से कि जिस तरह आप सब ने अन्ना हजारे का साथ दिया, वैसे ही ईरोम शर्मिला का साथ दें, और सरकार को झुकने के लिए और उनको उनका अधिकार दिलाने के लिए आओं एक और जंग का ऐलान करें
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