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क्या इसे ही प्यार कहते हैं.

सरोकार
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प्यार क्यास है. बहुत सोचा प्यार के बारे में, लिखने बठा. फिर देखा अपने चारो तरफ के वातावरण में, व्याप्ता प्यार को. प्यार मात्र भावनात्मक झुकाव हैं. और प्या‍र जब अपने चरम पर पहुंच जाता है, तो सारी सीमाएं, लोक-लाज त्याग देता है. नहीं देखता, समाज को, दुनियादारी को. बस अपने में मगन रहने की कोशिश में लगे रहते हैं; चाहे कॉलेज हो, बाग-बगीचा हो या फिर मंदिर. अपने प्यार को परवान चढाने की जद्दोजहद में, किसी कोने को तलाशते और प्रेम पाश में बंधे दिखाई पड ही जाते है. क्याप दो जिस्मों का मिलन ही प्रेम है, सोचने पर मजबूर कर रहा है. जिस तरह से जिस्मे की प्यास बुझने के लिए बनते रिश्ते और बुझ जाने पर टूट जाते हैं. क्या इसे ही प्यार कहते हैं.

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