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रिश्तों की पवित्रता का अंत

सरोकार
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क्या संसार के लिए केवल सेक्स ही सब कुछ हो चला है. युवा पीढी केवल और केवल सेक्स के पीछे नांच रही है. नहीं सोच रही कि क्या कर रही है. बस भागे जा रही है भागे जा रही है सेक्‍स के पीछे. इसका मुख्य कारण समाज द्वारा प्रतिबंध लगाना है. कहते है समाज जिस बात पर पाबंदी लगाता है वह उतना ही विकाराल रूप लेकर सामने खडी दिखायी देती है
वर्तमान परिप्रेक्ष्यि में पुत्र या पु‍त्री के माता पिता नहीं चाहते कि उनकी संतान शादी से पहले किसी के साथ संबंध स्थापित करें होता है ठीक इसके विपरीत, जैसे-जैसे बच्चा बडा होता है उसका झुकाव विपरीत लिंगी की ओर आकर्षित होने लगता है. उनका मन भी किसी नांव की भांति बीच समुंदर में हिलोरे खाने लगाता है, एक आकर्षण होने के नाते इनमें दोस्ती हो ही जाती है, (क्योंकि दोस्ती ही वो पहली सीढी होती है जो प्यार को परवान चढाने में मददगार साबित होती है.) और फिर शुरू हो जाता है सिलसिला एक मिलान का , स्कूल/कॉलेज बंक मारकर कहीं भी देखे जा सकते हैं, अपना कीमती समय व्यातीत करते हुए. अब तो भगवान की दहलीज भी अनछुई नहीं रही, चाहे मंदिर हो मस्जिद हो दिख ही जाते है लुकाछिपी का खेल खेलते, और तलाशते रहते है एकांत जगह, जहां किसी की नजर इन पर न रहें, कर सकें अपनी मनमानी.
मां-बाप भी क्या करें, कब तक अपने बच्चों के पीछे भागती रहेंगी. छोड देते हैं उनको उनके हाल पर. शायद इन लडके-लडकियों को तब भी पछतावा नहीं होता, जब ये अपना सबकुछ गंवा चुके होते हैं. इस युवा पीढी के लिए प्यार केवल जिस्मों की भूख शांत करना है, और कुछ नहीं, वह यह नहीं जानते कि, जिस सेक्स के पीछे वह इनता उत्सुक हो रहें हैं और अपना सबकुछ दांव पर लगाने के लिए आतुर भी रहतें हैं, हासिल क्‍या होता है बस दो या तीन मिनटों से ज्यादा कुछ नहीं. जिस प्रकार समुद्र में लहरें उठती है फिर शांत हो जाती है, वही हाल होता है इनका. फिर भी लगे रहते हैं, अपना समय, पैसा, जिस्म बर्बाद करने के लिए.
क्या युवा पीढी इतना भी नहीं सोच पा रही कि जो वह कर रही है उसका प्रभाव आने वाली पीढियों पर क्या पडेगा. सही बात है, पीढी दर पीढी परिवर्तन स्भाविक है, पहले सेक्स शादी के बाद, अब शादी के पहले और गिनती करना भी मुश्किल, कि कितनों के साथ संबंध बना चुके हैं. इससे यह बात साबित होती है कि वह अपने जीवन साथी को मात्र धोखा के अलावा कुछ भी नहीं दे सकते. कुछ तो जीवन साथी के साथ शादी के बाद भी छलावा करते रहते हैं, एक तरफ पत्नी, दूसरी तरफ प्रेमी/ प्रेमिका.
जिंदगी आसानी से कट जाती है जब तक ऐसे रिस्तों की भनक किसी को नहीं लगती. खुदा न खास्ता भूल से ही पता लग जाए, तो इन पवित्र रिश्तों में दरार पडते देर नहीं लगती. क्या‍ पता ये पवित्र रिश्ते है भी या कुछ और………………………; जब ये पता चलता है कि मेरी पत्नी या पति का संबंध शादी के पहले या अब भी है, पैरो के नीचे से जमीन खिसक जाती है, और कर देता है धोखा देने वाले का परित्याग. या फिर अपने अपको ठगा सा महसूस (कि मुझे धोखे में रखा) कर बैठता है एक अपराध, जिससे सारी जिंदगियां बर्बाद हो जाती है. पहले की भूल, बाद की परेशानी का सबब बन जाती हैं. क्योंकि मेरे हिसाब से तो भूल एक बार हो तो भूल कहलाती है, बार-बार की जाए तो जानबूझ कर कहलाती है.
वह यह नहीं जानते कि कभी न कभी सच्चाई सामने आ ही जाती है, और देखते-देखते हो ही जाता है, रिश्तों की पवित्रता का अंत.

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