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तैयार हो जाओ पेट्रोल १०० रूपये डीजल ७५ रूपये के लिए

सरोकार
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खुशियां मानइएं मिठाई बांटो, दूध पर २ और पेट्रोल पर ५ रूपये की वद्धि हो चुकी है, गैस तो छोड रहा था उसके दाम भी ३० रूपये बढ चुके हैं, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, एक दो सालों में एकाएक इनकी वृद्धि नहीं हुई है, जिसको लेकर जनता में रोष व्याप्त है, और विपक्षी चक्का जाम करने में लगी हुई है, क्या वास्तव में इस तरह चक्का जाम करने से बढे हुए दाम वापस ले लिए जाऐंगे, ऐसा संभव नहीं है, जैसा होता आया है वैसा ही होगा, कि पेट्रोल और डीजल के दामों में जब जब बढोत्तरी होती है तो जनता और विपक्षी सडक पर उतर आते है इसके बाद होता है कि दामों में कुछ कमी जरूरी कर ली जाती है जैसे अभी पेट्रोल पर ५ रूपये बढे है तो एक या दो रूपये कम कर दिये जाऐंगे. जिससे जनता और विपक्षी शांत हो जाऐंगे और माने की हमने दामों में कटौती करा ली. शायद उनको भ्रम में जीने की आदत हो चुकी है, होगा कुछ इस तरह कि ५ रूपये बढे हैं इसमें से १ या २ रूपये कम कर दिए जागेंगे और फिर ३ या ४ रूपये बढा दिये जाऐंगे् बात बराबर हो जाएगी.
जब दामों में बढोत्तंरी हुई तो पेट्रोलियम मंत्री ने कह ही दिया कि हम कब तक घाटे का सौदा करते रहेंगे, घाटे से उबरने के लिए दामों में बढोत्तरी करना जरूरी था.
मेरी राय पेट्रोलियम मंत्री माने तो पेट्रोल के दाम १०० रूपये और डीजल के दाम ७५ रूपये कर दिये जाए, क्योंकि किस्तों में कब तक जनता को झटका देते रहोगे. यदि १०० रूपये भी कर दिए तब भी जनता रो गाकर चुप हो जाएगी.आखिर जनता है शोषण तो सरकार करती ही है. इन बढे हुए दामों में अर्थशास्त्र के जनक एडिम स्मीथ का सिद्धांत कि जिस वस्तुो की मांग अधिक होती है उसके दामों में बढोत्तंरी होने लगती है.
सरकार क्या सोच रही है महंगाई तो अब आम जनता की कमर तोडने लगी है, पहले किसान आत्मए हत्या करने की खबर अधिकांश प्रकाशित होती थी अब किसानों के साथ साथ गरीब तबके और मध्यम वर्गीय लोगों की बारी है. क्या कमाए क्या खुद खाए और क्या परिवार को खिलाएं. जीना है तो पेट को भरना पडेगा, पेट भरने के लिए पैसा चाहिए, महंगाई चरमसीमा पर कर चुकी है, पैसा ही क्या करें, जितना कमाया जाता है १५ दिनों में ही खत्म हो जाता है, फिर जीने के लिए क्या चोरी की जाए, लूटा जाए. या फिर लिया जाए आत्महत्या् का सहारा, खुद मरो और साथ ले जाओं परिवार को भी, नहीं तो वो वैसे ही भूख की मार झेलते झेलते मर ही जाएंगे. यदि सरकार नहीं चाहती कि ऐसा हो तो महंगाई में कम करनी ही होगी.
सोच क्या, रहे है सरकार ऐसा कुछ नहीं करने जा रही है जनता जाए भाड में तैयार हो जाइए १०० रूपये पेट्रोल और ७५ रूपये डीजल के लिए.नही तो जोर का झटका जोरो से ही लगेगा. और मुंह से आह भी नहीं निकलेगी.

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