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किसानों के अधिकारों की मांग करोगें तो पडेगी लाठियां

सरोकार
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कैसा प्रशासन है जो सच्चाई के लिए और गरीब किसानों के हक में लडे उस पर लाठिया क्यों बरपाई जाती है, क्या यही कानून व्यवस्था है, हक मांगने का अधिकार सभी को समान है, पर अपने अधिकारों की लडाई लडी जाए और इसके एवज में मिलती लाठिया. कहा तक उचित है. यूपी सरकार भटटा परसौल गांव में हुए इस बर्वरतापूर्वक घटना क्रम को राजनीति और आने वाले विधानसभा चुनाव से जोडकर देख रही है. और कह रही है सभी पार्टियां इस घटना क्रम में अपनी राजनैतिक रोटियां सकेंने में लगी हैं.

ये बात से सोलह आने सही है कि राजनैतिक पार्टिया पूरे घटनाक्रम में अपनी रोटिया सकेंने में लगे पडे है. कोई कम कोई ज्यादा. चाहे वो बीजेपी हो, सपा हो, कांग्रेस हो या फिर अन्य पार्टिया.

परन्तु इस प्रकार यूपी सरकार द्वारा जगह जगह लोगों पर लाठिया बरसाना ठीक है. समझ से परे लगता है, कहने को तो मुख्यसमंत्री ने अपने ब्यान में कह दिया कि प्रदेश में शांति बहाल और अराजकता न फैले ऐसा करना पडता है. पर प्रदेश सरकार ये नहीं सोच रही कि भटटा परसौल गांव से इतनी बडी संख्या में गायब व मारे गए लोगों का क्या कसूर था, और जो लोग अब भी गायब हैं वो कहा हैं और किस स्थिति में हैं,

देखा जाए तो ये मानव के अधिकारों का हनन है. और हनन हुआ भी है. किसी अन्य पाटी पर लछंन लगाने से अपना गिरेवान साफ नहीं हो जाता. जिस प्रकार मायावती ने प्रेस कांफ्रेस में सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर लगाया. यदि मायावती द्वारा सोनिया गांधी पर लगाये जा रहे आरोप कि रेल कोच में भी किसानों की जमीन को हडप लिया गया और उनको उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया. तो इसकी जांच भी होनी चाहिए, इसका मतलब यह होता है कि जैसा अन्य प्रदेशों में होता है वैसा ही उत्तर प्रदेश में भी होगा.

माना कि विधानसभा के चुनाव नजदीक आने वाले हैं, परन्तु अपने हक और किसानों को हक दिलाने के लिए घरने पर बैठे लोगों को गिरफतार कर लिया जाए, और मांगी जाने वाली मांगों के एवज में उन पर लाठिया भाजी जाए. प्रदेश सरकार को शोभा नहीं देता. मांग यदि उचित है तो पूरा करने का प्रयास या आस्वासन दिया जाता है, यदि गलत तो गलत है. पर सरकार पर काबिज होकर किसानों के साथ खिलवाड करना शर्मसार हैं

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